Wednesday, June 20, 2012

BJP and Dalits - भाजपा और दलित


पिछले 65 वर्षों से मेघवंशी दलित कांग्रेस को माँ मान कर उसके चरणों में लोटते रहे हैं.

अंग्रेज़ों से सत्ता हस्तांतरित होकर कांग्रेसियों के पास आने के कारण और उस समय कांग्रेस का सशक्त विकल्प न होने के कारण कोई अन्य गोद नहीं थी जिसमें ये बैठने की कोशिश करते. लेकिन दूध पिलाना तो दूर कांग्रेस ने इन्हें कभी ढँग से पास में बिठाया भी नहीं. इनके पास पैसा और पार्टी फंड नहीं था. केवल वोट था जिसे सस्ते में लेकर इस पार्टी ने वोटर को भूल जाना बेहतर समझा. अति ग़रीब समुदायों की स्थिति नहीं बदली. धीरे-धीरे इनकी निराशा बढ़ती गई.

जम्मू-कश्मीर में मेघ समुदाय के सामाजिक स्तर को बेहतर बनाने में राजा हरि सिंह का बहुत बड़ा हाथ रहा है. लेकिन वहाँ के कार-ए-बेगार कानून (यह कानून हिंदू समुदायों को कानूनन यह हक देता था कि वे मेघों को बिना किसी तरह की पगार दिए उनसे कोई भी काम ले सकते थे) के पश्चप्रभावों (after effects) से जूझ रहे मेघों की अधिकांश संख्या को अभी तक आर्थिक विकास का मुँह देखना नसीब नहीं हुआ. हालाँकि वे पंजाब के मेघों के मुकाबले अब अधिक शिक्षित हैं और अधिक उन्नति कर चुके हैं, राजनीतिक रूप से भी. 

भारत विभाजन के बाद स्यालकोट से जालंधर और पंजाब के अन्य शहरों में आकर बसे मेघों को दोहरी मार पड़ी. वहाँ अंग्रेज़ों के राज में इनके लिए जो रोज़गार के अवसर बने थे वे अचानक समाप्त हो गए. भारत में आकर फिर से इन्हें न केवल प्रतिदिन की रोटी के लिए जूझना पड़ा बल्कि जात-पात को नई जगह और नए माहौल में झेलना पड़ा. यह मानना इनकी नियति थी कि जिस कांग्रेस को सत्ता दी गई है शायद वही इनकी नैया को पार लगाएगी. अंग्रेज़ों द्वारा दिए गए आरक्षण का श्रेय अब कांग्रेस को दिया जाने लगा या कहें कि कांग्रेस उस श्रेय को बटोरने लगी.

इस बीच भारत की राजनीति का चेहरा बहुत बदल गया है. जनसंघ से लेकर भाजपा तक एक हिंदूवादी विचारधारा विकसित हुई जिसे दलित संदेह की दृष्टि से देखते रहे हैं क्योंकि हिंदू धर्म के नाम से चल रही छुआछूत को जनसंघ से जोड़ कर भी देखा जाता रहा और भाजपा से भी. इस बीच लोकनायक जय प्रकाश नारायण के आंदोलन के बाद जो जनता पार्टी अस्तित्व में आई उसने जनसंघ की कट्टर हिंदूवादी छवि को बदलने में मदद की.

मुझे याद है कि 1977 में आपातकाल के बाद जो चुनाव हुए थे उसमें श्री मनमोहन कालिया के प्रयासों से जालंधर के भार्गव कैंप के एक सामाजिक कार्यकर्ता श्री रोशन लाल को जनता पार्टी का टिकट मिला. देश भर में जनता पार्टी को अभूतपूर्व समर्थन मिला लेकिन श्री रोशन लाल मेघों के गढ़ भार्गव कैंप से चुनाव हार गए. मेघों ने हलधर पर मोहर लगाई तो सही लेकिन ऐसा करने की सही राजनीतिक समझ रखने वाले मेघ उस समय कम थे. रोशन लाल जी के हक में प्रचार करने के लिए मैं भी जालंधर गया था और मुझे याद है कि आर्यसमाजी विचारधारा (उस समय यह शब्द कांग्रेसी विचारधारा का पर्यायवाची था) के लोगों ने उन्हें हराने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया था.

अब समय में काफी परिवर्तन आ चुका है. कई मेघों ने अपने सेवा क्षेत्र के छोटे-छोटे उद्योग धंधों और लघु उद्योगों के बल पर आर्थिक विकास किया है. समय के साथ भाजपा ने दूकानदारों और व्यापारियों की पार्टी होने की छवि अर्जित की है. इसी सिलसिले में इसने मेघ समुदाय के व्यापारियों और उद्यमियों को चिह्नित किया है.

वर्ष 1997, 2007 और 2012 के चुनाव में जालंधर वेस्ट से भाजपा ने आरएसएस काडर से आए श्री चूनी लाल भगत को चुना और भाजपा का टिकट दिया. वे अजेय समझे जाने वाले कांग्रेसी उम्मीदवार को हरा कर चुनाव जीत गए. वे तीन बार चुनाव जीते. 2011 में शिरोमणी अकाली दल और भाजपा गठबंधन के समर्थन से वे पंजाब विधान सभा के डिप्टी स्पीकर बने. वर्ष 2012 के पंजाब चुनावों में वे विजयी हुए और पंजाब विधान सभा में उन्हें भाजपा के विधायक दल का नेता बनाया गया. केबिनेट मंत्री के तौर पर उन्हें लोकल बॉडीज़ और मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च मंत्रालय दिया गया. भाजपा और शिअद गठबंधन की यह पहल ध्यान खींचती है.

उधर राजस्थान से श्री कैलाश मेघवाल को भाजपा का समर्थन मिला और केंद्र में भाजपा शासन के दौरान वे सन् 2003 से 2004 तक सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय के राज्यमंत्री रहे. वे 1975 से 1977 तक आपातकाल के दौरान जेल काट चुके हैं. श्री अर्जुन मेघवाल (जो पूर्व में आईएएस अधिकारी थे) आरएसएस काडर से भाजपा में आए और लोक सभा के बहुत सक्रिय सदस्य हैं. श्री नितिन गडकरी ने भारतीय जनता मजदूर महासंघ की स्थापना की है. इस कार्य के लिए राजस्थान में तीन बार विधायक रह चुके और एक बार राज्य मंत्री, आयुर्वेद, रह चुके अचलाराम मेघवाल को भारतीय जनता मजदूर महासंघ, पाली जिला के अध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंपी गई है. श्री मेघवाल पाली जिले में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक रहे हैं. पंजाब में श्री कीमती भगत, जो आरएसएस काडर से आए हैं, को भाजपा ने गोरक्षा समिति का चेयरमैन बनाया है. ऐसे ही मेघों के और बहुत से नाम होंगे जो अब भाजपा से जुड़े हैं.

मेघवंशियों के लिए इन बातों से यह समझना आसान हो सकता है कि भाजपा ने भारत के मेघवंशियों (वृहद्तर रूप में दलितों और आदिवासियों) में अपनी पैठ बनाई है जिसने भाजपा की छवि को बदला है और भाजपा के ज़रिए राजनीति में इन समुदायों की सहभागिता बढ़ी है.

इतना होने के बावजूद अति पिछड़े मेघ समुदायों के लिए यह एक मुद्दा बना रहेगा कि 'अपने पास देने के लिए पार्टी फंड कितना है'. राजनीति पैसे के बिना नहीं चलती. समुदायों के भीतर ऐसे फंड बनाने ही पड़ेंगे.

Arjun Meghwal, BJP, Rajasthan
Kailash Meghwal, BJP, Rajasthan
Chuni Lal Bhagat, BJP, Punjab
Achalaram Meghwal, BJP, Rajasthan
Kimti Bhagat, BJP, Punjab
Chandrakanta Meghwal, BJP, Rajasthan
Mrs. Kamsa Meghwal, BJP, Rajasthan

Bali Bhagat, BJP, Jammu

Unity of SCs, STs and OBCs - अ.जा., अ.ज.जा. और पिछड़ी जातियों की एकता


कई विद्वानों ने इस विषय पर विचार-विमर्ष किया है विशेषकर बहुतजन हिताय दर्शन के तहत जिसका बहुत महत्व है. मैंने भी अपने चिट्ठों में इस विचार-धारा के समर्थन में लिखा है.

लेकिन जब समाज की व्यावहारिक स्थिति की बात आती है तो दर्शन अलग खड़ा दिखता है और वस्तुस्थिति अलग.

यह ऐतिहासिक तथ्य है कि स्वयं को सुरक्षित रखते हुए ब्राह्मणों ने दलित जातियों और जन जातियों पर सीधे हमले स्वयं तो कम ही किए हैं. अधिकतर हमले अन्य पिछड़ी जातियों के लोग ही करते आए हैं. यह ब्राह्मणवाद का ऊंच-नीचवादी हथकंडा है जो भारत के मूलनिवासियों को बाँटने और उन्हें एक-दूसरे के हाथों मरवाने में सफल होता आया है.

यही फैक्टर है जो आज अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ी जातियों की एकता की संभावना पर प्रश्न चिह्न लगाता है. देश के दूर-दराज़ के गाँवों में फैली पुरानी और जातिगत हिंसक प्रवृत्तियाँ इस एकता को रोकने के लिए हमेशा कटिबद्ध रहती हैं. कुछ राज्यों में अन्य पिछड़ी जातियाँ अब तेज़ी से सत्ता की ओर बढ़ रही हैं और अनुसूचित जातियाँ तथा अनुसूचित जनजातियाँ उनके मुँह की ओर ताक रही हैं कि शायद बुलावा आ जाए. उधर अन्य पिछड़ी जातियाँ इनकी ओर देख तक नहीं रहीं.

देखते हैं स्थिति कैसे बदलेगी. इसे बदलना तो होगा.

Megh Politics

Tuesday, June 19, 2012

Bhagat Chuni Lal felicitated by Megh community - भगत चूनी लाल का मेघ समुदाय ने नागरिक अभिनंदन किया


ऑल इंडिया मेघ सभा, चंडीगढ़ ने 17 जून, 2012 को अंबेडकर भवन, सैक्टर-37, चंडीगढ़ में मेघ भगत परिवारों का एक गेटटुगेदर आयोजित किया जिसमें भगत श्री चूनी लाल, माननीय मंत्री लोकल बॉडीज़ और मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, पंजाब सरकार का मेघ समुदाय की ओर से नागरिक अभिनंदन किया गया.

वातावरण में अपूर्व उत्साह था. उनके आते ही सभागार का माहौल भगत चूनी लाल ज़िंदाबाद के जयकारों से गूँज उठा. इस अवसर पर सभी वक्ताओं ने श्री चूनी लाल जी के राजनीतिक करियर की चर्चा की, इस क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों का उल्लेख किया और उनके करियर की वर्तमान बुलंदियों की जम कर तारीफ़ की गई. वक्ताओं ने भाजपा और शिरोमणी अकाली दल के नेतृत्व को धन्यवाद दिया जिन्होंने भगत जी को वांछित समर्थन दे कर मेघ समुदाय की छवि को भी नई पहचान दी है. साथ ही उन्होंने मेघ भगत समुदाय से अपील की कि वे भविष्य में ऐसी ही एकता का प्रदर्शन करते रहें और विभाजित करने वाली ताक़तों को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ें और अपनी चमकदार पहचान बनाएँ.

भगत चूनी लाल जी के राजनीतिक जीवन में उनके अपने समुदाय द्वारा किया गया उनका यह पहला नागरिक अभिनंदन था और इस पहल का श्रेय ऑल इंडिया मेघ सभा, चंडीगढ़ को जाता है.

इस अवसर पर बोलने वालों में सर्वश्री महेंद्र कुमार (आईएएस), यशपाल (आईईएस), राजेश कुमार, (सेवानिवृत्त सुपरिन्टेंडिंग इजीनियर), ऑल इंडिया मेघ सभा के इंद्रजीत मेघ (अध्यक्ष), गोविंद कांडल (सचिव) आदि प्रमुख थे.

श्री गोविंद कांडल ने इस अवसर पर मेघ समुदाय के सामाजिक कार्यकर्ता श्री गोपीचंद भगत, श्री बुड्डामल भगत, श्री मिल्खीराम भगत (पीसीएस), श्री लेखराज भगत (आईपीएस) आदि द्वारा मेघ समुदाय के उत्थान के लिए किए गए अथक प्रयासों को याद किया और उनका आभार प्रकट किया. उन्होंने ऊँची स्थिति पर बैठे मेघों और इंटरनेट के द्वारा मेघ समाज की सेवा करने वाले सदस्यों का आभार प्रकट किया. 

ऑल इंडिया मेघ सभा की ओर से बोलते हुए श्री इंद्रजीत मेघ ने मुख्य अतिथि श्री चूनी लाल को इस संस्था के एक पुराने और महत्वपूर्ण सपने कबीर मंदिर की याद दिलाई जिसे मेघ भवन के नाम से भी जाना जाता है. भगत जी को बताया गया कि इसके लिए कई प्रयास किए गए हैं लेकिन ज़मीन की कीमतों और राजनीतिक समर्थन के अभाव में यह सपना अभी पूरा नहीं हुआ है. अपने भाषण के दौरान भगत जी ने इस बात को नोट किया और आश्वासन दिया कि इस सपने को हक़ीक़त में बदलने के लिए शीघ्र ही प्रयास शुरू करेंगे. इस माँग को भगत जी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले श्री महेंद्र भगत ने भरपूर हामी दी और कहा कि यह सपना पूरा हो कर रहेगा.

हाल ही में पीसीएस परीक्षा में चुने गए युवाओं को बधाई दी गई और बहुत अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण हुए छात्र-छात्राओं को इस अवसर पर सम्मानित किया गया. मंच संचालन श्री राजेश भगत (सेवानिवृत्त सुपरिन्टेंडिंग इजीनियर) ने किया और उन्होंने श्री चूनी लाल जी के सम्मान में अपनी कविताओं पढ़ीं.

कार्यक्रम के अंत में एक प्रीति भोज का आयोजन किया गया. शेष इन तस्वीरों में :-

स्वागतम्
पुष्पगुच्छ से स्वागत

शॉल ओढ़ा कर अभिनंदन किया गया
मुख्य अतिथि का संबोधन
 
मुख्य अतिथि को स्मृति चिह्न
श्री गोविंद कांडल, सचिव, AIMS
श्री यशपाल, पूर्व अध्यक्ष, AIMS
श्री साथी, लीगल एडवाइज़र, AIMS
श्री इंद्रजीत मेघ, अध्यक्ष, AIMS
मंच पर उपस्थिति
श्री महेंद्र कुमार, आईएएस, सैक्रेटरी टू गवर्नर हरियाणा
93% प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाली छात्रा का सम्मान
श्रोताओं ने एकाग्रता से सुना


महिलाओं की बड़ी उपस्थिति दर्शनीय रही
प्रीति भोज


Megh Politics

Friday, June 15, 2012

Achlaram Meghwal - अचलाराम मेघवाल


देसूरी,12 जून, 2012. पूर्व आयुर्वेद राज्य मंत्री अचलाराम मेघवाल को भारतीय जनता पार्टी ने हाल ही में गठित अपने नए अग्रिम संगठन भारतीय जनता मजदूर महासंघ के जिलाध्यक्ष पद पर मनोनीत किया है. इसी के साथ सात बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके मेघवाल के समर्थकों में खुशी की लहर फैल गई है.

भारतीय जनता मजदूर महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. महेश शर्मा ने यह नियुक्ति की हैं. इस नियुक्ति के बाद मेघवाल ने कहा कि वे पाली जिले के मजदूरों को राजनीतिक रूप से संगठित करेंगे और उनके हितों के लिए सरकार और प्रशासन से लडेंगे. उन्होंने बताया कि देश में संगठित क्षेत्र में लगभग 5 करोड़ एवं असंगठित क्षेत्र में लगभग 40 करोड़ से अधिक लोग श्रम साधना में जुटे हुए हैं, जिनकी समस्याओं के समाधान के लिए कुछ क्षेत्रों में भले ही कुछ नियम एवं कानून बने हों, लेकिन वे आधे-अधूरे एवं असफल प्रतीत हो रहे हैं. इससे भी भिन्न कुछ क्षेत्रों में तो न नियम हैं और न ही कानून हैं.

उन्होंने बताया कि इस दुखद स्थिति से निजात पाने के लिए देश की लगभग 32 प्रतिशत श्रम साधक आबादी के लिए तीव्र गति से कार्य करना होगा.
          
ज्ञात रहे कि 23 नवम्बर 2010 को भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी ने भारतीय जनता मजदूर महासंघ की स्थापना की घोषणा की थी और इसके प्रथम अध्यक्ष के रूप में मध्यप्रदेश के श्री प्रहलाद पटेल को यह जिम्मेवारी सौंपी थी. इस दिशा में श्री गडकरी का ट्रेडयूनियन का अनुभव एक मॉडल बना हैं, जो महराष्ट्र राज्य में भारतीय जनता कामगार महासंघ के नाम से चल रहा है. अब अपने इस अनुभव को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देने के कार्य में श्री गडकरी काफी रुचि ले रहे हैं और इसे महत्व देते हुए अनुभवी एवं वरिष्ठ नेताओं को जिला स्तर की कमान सौप रहें हैं. इसी कड़ी में तीन बार विधायक निर्वाचित होकर और एक बार राज्य मंत्री रह चुके मेघवाल को पाली जिले की जिम्मेवारी सौंपी गई हैं. मेघवाल पाली जिले में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक रहे हैं और जिलाध्यक्ष, भाजयुमो के प्रदेश उपाध्यक्ष, भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष, प्रदेश एवं राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य, भाजपा के प्रदेश मंत्री सहित कई पदों पर पार्टी को अपनी संगठन सेवाएँ दे चुके हैं.

(अचलाराम मेघवाल
पूर्व राज्य मंत्री, आयुर्वेद, राजस्थान सरकार
अम्बेडकर नगर, सादड़ी, जिला-पाली, राजस्थान.)
मोबाईल नं.- 9928546333
email- achlarammeghwal@gmail.com

Megh Politics

Saturday, June 9, 2012

Megh Dharma - मेघ धर्म

क्या आप धर्म और राजनीति को अलग मानते हैं या अलग रखने के हिमायती हैं? तो कृपया इसे पढ़ें और फिर से विचार करें. मेघ धर्म अस्तित्व में है, यह भी एक सच्चाई है.  
Kishore Asmal, a Meghwar from Pakistan wrote on facebook-
“Do you Hate the Caste System of Sanatan Dharam? If YES... then why are you accepting the SCHEDULE CASTE LABEL on you Maheshwaris? Its been 1200 years, when our Taaran Haar Lord Dhani Matang gave us Freedom from the so-called Brahmin Samaaj. By giving us the BARMATI PANTH, He challenged the CASTE SYSTEM of SANATAN DHARAM. He addressed us with the title of MAHESHWARI. But.. now? Still We are being counted as a SC Hindu!!  Aren't you all think that what we are doing since 1200 years? Only WAKE-UP Call is needed.”
So many things were said by various people. But, here I am reproducing what Mr. Navin Bhoiya said. Please read it carefully.
This topic has forced me to log in facebook even during my study time. Just now, my brother Khim Dhua has phoned me and apprised about this topic. So my submission is --- At the Outset, first we have to understand the view of Mr. Kishor Asmal (who lives in Karachi). He wish to say that when SC/ST/OBCs have been put into degraded stage by Sanatan Dharam, why we still call ourselves as SC/ST?
In this regard, I wish to apprise Kishore that SC is a collective name of lakhs of Meghwars and other untouchable castes in India (given by Dr. Ambedkar) for identification because it was very difficult to give government benefits to these people.
SC is not a synonymous to Untouchable, in fact it is a identification of group of people which require special support from Government in terms of education, jobs, good health, land, etc.
The name SC/ST was necessary as it was required to be recorded in Constitution. It is identification. The name SC/ST is a reward given by Dr. Ambedkar in return of bondage of thousands of years of untouchability. We get SC certificate from Government and secures reservations in government jobs, education, scholarships, etc. It is the basis of securing benefits.
As far as religion is concerned, our religious heads has tried their best to move us away from Sanatan stronghold. Shree Dhanimatang, Saint Kabir, Nanak, Baba Farid, Tukaram, Eknath, etc have tried their best to keep us away from Sanatan Dharam. But the roots of Vedic Sanatan Dharam are so high, that we were not able to put ourselves away from it. It is a social system of villages. In every village we SC/ST are in MINORITY.
Now, after getting education from last 60 years and jobs etc., we are now in a position to challenge this system, which we must do.
Dr. Ambedkar has therefore renounced Sanatan Dharam and embraced BUDDHISM to free our people from the bondage of Brahminist religion. Unfortunately, he died soon after converting Buddhism otherwise entire India would have been BUDDHIST INDIA. Dr. Ambedkar has once said in 1956 - Agar 5 Saal aur Jee Jaayu to Saare Bhaarat ko Baudhmay Bana Dunga.
So, either we can all convert to Buddhism now or to find some other religion where millions of SC/ST/OBC can join that force of conversion to draw a BIG LINE.
THIS IS THE ONLY THING REQUIRED TO BE DONE TO RULE OUR MOTHER LAND. Otherwise, these invaders (Aryans) are ruling us by different names. They have 80% land and power and money in their control. We can beat them only through POLITICAL POWER. For political power we must be united under one name, one religion and that is MEGH. Because Meghwar constitutes 70% of entire Scheduled Caste community of India. Ours is religion founded in 8th Century --- by the Meghwar and for the Meghwar exclusively. This religion is MEGH DHARAM. We have to revive it as soon as we can.
Unfortunately, Dr. Ambedkar was not aware about our Barmati Dharam otherwise he would have definitely selected BARMATI PANTH as MEGH DHARAM for its basic teachings which are very very very near to BUDDHISM.
Dr. Ambedkar was worried about Monks in Buddhism, he wanted original Sangha Monks in 1956 but could not find many due to total ban on Buddhism prior to revival by Dr. Ambedkar. Here in Barmati Panth - Priests are present in heaps and bounds with specialty. They can cover entire India.
I conclude - as per our religious teachings, as per advice of Dr. Ambedkar and as per preachings of Lord Buddha - we are not fallen people. WE ARE GREAT PEOPLE. Our forefathers were very Great, they have created INDUS VALLEY CIVILIZATION (one of the oldest and modern civilization of that period). Our forefathers have invented the science of zodiac sign, meditation and all the good things. These Aryans after invasion have stolen everything from us and put in their name. Even their language SANSKRIT is not original. Sanskrit is an interpolation in PALI langauge (ancient language of India). Aryans have stolen our golden period from us. We can control the situation only through SEPARATE RELIGION and POLITICAL POWER.
Navin Bhoiya
  Megh Politics

Poverty - गरीबी


आखिर गरीबी के मायने क्या?

पिछले साल के अंतिम दिनों की बात है। दो युवकों ने तय किया कि वे अपने जीवन का एक माह उतने पैसों में बिताएंगे, जो एक औसत गरीब भारतीय की मासिक आय है। उनमें से एक युवक हरियाणा के एक पुलिस अधिकारी का बेटा है। उसने पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की है और अमेरिका और सिंगापुर में बैंकर के रूप में काम कर चुका है। दूसरा युवक अपने माता-पिता के साथ किशोरावस्था में ही अमेरिका चला गया था और उसने एमआईटी में पढ़ाई की है।

दोनों ने अलग-अलग समय पर भारत लौटना तय किया था। बेंगलुरु में उन्होंने यूआईडी प्रोजेक्ट में शिरकत की, संयोग से वे रूममेट बने और गहरे दोस्त बन गए। दोनों इस उम्मीद के साथ भारत लौटे थे कि शायद वे देश के कुछ काम आ पाएंगे, लेकिन वे भारतीयों के बारे में बहुत कम जानते थे। एक दिन उनमें से एक ने कहा : क्यों न हम एक औसत भारतीय की औसत आय पर एक महीना बिताकर भारतीयों के जीवन को समझने की कोशिश करें? दूसरे युवक को यह बात जंची। दोनों इस विचार को अमली जामा पहनाने निकल पड़े। लेकिन यह अनुभव उन दोनों के जीवन को बदलकर रख देने वाला था।

यहां पहला सवाल तो यही उठता है कि एक भारतीय की औसत आय क्या है? उन्होंने हिसाब लगाकर निष्कर्ष निकाला : 4500 रुपए प्रतिमाह या 150 रुपए प्रतिदिन। दुनियाभर में लोगों की आय का एक तिहाई हिस्सा किराये-भाड़े पर खर्च होता है। इसके लिए उन्होंने 50 रुपए काटकर 100 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से एक माह बिताना तय किया।

उन्हें लगा था कि इससे वे गरीब नहीं हो जाएंगे, लेकिन 75 प्रतिशत भारतीय इस आंकड़े के नीचे अपना जीवन बिताते हैं। वे दोनों एक छोटे-से अपार्टमेंट में रहने चले गए। उन्होंने पाया कि अब वे अपने समय का एक बड़ा हिस्सा यह सोचने में बिता रहे थे कि वे दो वक्त के भोजन का प्रबंध कैसे करेंगे। बाहर खाना खाने का तो सवाल ही नहीं उठता था। यहां तक कि ढाबों पर मिलने वाला खाना भी उनकी औसत आय के अनुपात से महंगा था।

दूध और दही भी उनकी पहुंच से बाहर थे, इसलिए उन्हें इनका उपयोग भी किफायत से ही करना था। घी या मक्खन जैसी सुविधाएं भी वे वहन नहीं कर सकते थे, लिहाजा उन्हें रिफाइंड तेल का ही उपयोग करना था। दोनों के साथ यह बात अच्छी थी कि उन्हें खाना बनाना आता था। उन्होंने पाया कि वे सोयाबीन की बड़ियों का इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि वे सस्ती होने के साथ ही पौष्टिक भी थीं। उन्होंने सोयाबीन की बड़ियों पर प्रयोग करते हुए अनेक व्यंजन बनाए। बिस्किट भी उनके लिए मददगार साबित हुए, क्योंकि इनकी वजह से उन्हें मात्र २५ पैसे में २७ कैलोरी मिल रही थी। उन्होंने केले को तलकर बिस्किट के साथ खाने का प्रयोग किया। यह उनकी रोज की दावत थी।

लेकिन सौ रुपए रोज पर जीवन बिताने के कारण उनके जीवन का दायरा बहुत सिमट गया। अब वे बस से एक दिन में पांच किलोमीटर से अधिक लंबी दूरी तय नहीं कर सकते थे, वे दिन में केवल पांच या छह घंटे बिजली का उपयोग कर सकते थे और नहाने के लिए वे एक साबुन को दो भाग में काटकर उसका उपयोग करते थे। जाहिर है वे फिल्में देखने नहीं जा सकते थे। बीमार पड़ना तो वे कतई वहन नहीं कर सकते थे। उन्होंने पूरा महीना यह प्रार्थना करते हुए बिताया कि कहीं वे बीमार न पड़ जाएं, नहीं तो उनका पूरा बजट गड़बड़ा जाएगा।

अंतत: वे 100 रुपए रोज पर एक महीना बिताने में कामयाब रहे। लेकिन बुनियादी सवाल अपनी जगह पर कायम है। क्या वे 32 रुपए प्रतिदिन की आय पर भी एक महीना बिता सकते थे? भारत में गरीबी के निर्धारण का यही आधिकारिक आंकड़ा है। जब योजना आयोग ने सर्वोच्च अदालत को सूचित किया कि यह मानदंड भी शहरी गरीबों के लिए है, ग्रामीण गरीबों के लिए यह 26 रुपए प्रतिदिन है, तो इस पर विवाद होना स्वाभाविक ही था।

जब उन युवकों को यह पता चला तो उन्होंने तय किया कि वे केरल के करुकाचल गांव में जाएंगे और 26 रुपए रोज की आय पर जीवन बिताने का प्रयास करेंगे। उन्हें चावल, केले और चाय के सहारे जीने पर मजबूर होना पड़ा। लेकिन इतनी खुराक पर भी रोज 18 रुपए खर्च हो जाते थे। कुछ दिनों बाद उन्होंने पाया कि उनका पूरा दिन कम से कम रुपयों में भोजन का बंदोबस्त करने में ही बीत रहा है। अब उन्होंने परिवहन के किसी भी साधन की सहायता लेना छोड़ दिया और पैदल ही चलने लगे। साबुन के पैसे बचाने के लिए उन्होंने एक माह अपने कपड़े भी नहीं धोए। ऐसे में यदि उनमें से कोई बीमार पड़ जाता तो वे भूखों ही मर जाते। उन युवकों के लिए आधिकारिक मानदंडों की गरीबीके वे दिन एक हिला देने वाला अनुभव था।

एक माह पूरा होने पर उन्होंने लिखा

हम खुश हैं कि अब हम फिर से सामान्यजीवन बिता सकेंगे। माह के अंत पर हमने जोरदार दावत मनाई, लेकिन यह सोचकर मन उदास हो जाता है कि देश के 40 करोड़ लोगों के लिए गरीबी कोई प्रयोगनहीं, बल्कि जीवन की वास्तविकता है और वे इस तरह की दावत कभी नहीं मना सकते। हम तो एक महीने बाद अपनी आरामदेह जिंदगी में लौट आए, लेकिन उनके बारे में क्या, जिनका पूरा जीवन ही आजीविका के लिए एक कठोर संघर्ष है? एक ऐसा जीवन, जिसमें भूख सबसे बड़ी सच्चाई है और स्वतंत्रता सबसे बड़ा भ्रम।

हमारा जीवन फिर से पहले की तरह जरूर हो गया है, लेकिन अब हम पहले की तरह पैसा खर्च नहीं कर सकेंगे। क्या वाकई हमें हेयर प्रोडक्ट्स और ब्रांडेड कोलोन की जरूरत है? क्या महंगे रेस्तरां में भोजन करना सप्ताहांत बिताने का अनिवार्य तरीका है? क्या वाकई हम इस सुख-वैभव के योग्य हैं? यह महज संयोग ही था कि हमारा जन्म एक समृद्ध परिवार में हुआ था और हम एक आरामदेह जीवन बिता सकते हैं, लेकिन उन लोगों के बारे में क्या, जो अपनी क्रूर नियति से संघर्ष करने को मजबूर हैं? हमें इन सवालों के जवाब नहीं पता, लेकिन अब हम इतना जरूर जानते हैं कि गरीबी के मायने क्या होते हैं। हमें यह भी याद रहेगा कि जिन लोगों के साथ हमने ताउम्र अजनबियों की तरह व्यवहार किया, उन्होंने तंगहाली के उन दिनों में खुले दिल से हमारा साथ दिया।

इन युवकों के जीवन के इस अनुभव से हमें सबक मिलता है कि सभी लोगों के लिए आवश्यक पोषक आहार सुनिश्चित करने के लिए खाद्य सुरक्षा कानून अनिवार्य है, क्योंकि भूख और गरीबी के कारण इंसान अपने छोटे से छोटे सपने भी पूरे नहीं कर सकता। और सबसे जरूरी बात यह कि लोकतंत्र की सफलता के लिए समानुभूति की भावना का होना सबसे जरूरी है।
लेखक- हर्ष मंदर

लेखक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य हैं।

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