Saturday, September 29, 2012

Interesting and dreadful images take away your money - रोचक और भयानक तस्वीरें आपका धन ले जाती हैं



बनाई गई यह तस्वीर शिव की है जिसके हाथ में त्रिशूल (हथियार) है, गले में साँप है, माथे पर चंद्र (Luna) है.  रंग काला है. कुछ गहने पहने हैं. कुछ दूरी पर शिवलिंग है. एक रोचक और भयानक बिंब. इस बिंब को बेचने वाला कितना धन कमाता है अनुमान लगाना कठिन है. कहते हैं कि भारत में सबसे अधिक मंदिर शिव के नाम से बने हैं.
बस में कार्यालय जाते समय रास्ते में एक हवेली आती थी जिसके बाहर बहुत बड़े बोर्ड पर लिखा था- बालब्रह्मचारिणी विषकन्या योगिनी. इसकी ओर ध्यान खिंचता था. एक दिन अपने सहकर्मी मूर्ति (एक ब्रह्मण) को कहा, देखिए भाई साहब, यह नाम कितना रोचक और भयानक लगता है. उन्होंने तुरत कहा, जी हाँ, और आकर्षित भी करता है.

धर्म किसी मानवोचित गुण को धारण करने का नाम है. लेकिन रोचक और भयानक धार्मिक कथाओं/चित्रों के साथ किसी को आकर्षित करना उससे जुड़ी एक प्रकार की दूकानदारी है, ठीक उसी प्रकार जैसे फिल्मों और टीवी सीरियलों का व्यापार. आकर्षक और रोचक विज्ञापन बनाना और उसे बार-बार दिखा कर लोगों, विशेषकर बच्चों के मन को आकर्षित/प्रभावित करना दार्घावधि में व्यापार को बढ़ाता और धन लाता है.
एक विज्ञापन की वास्तविक सफलता 25-30 वर्ष बाद दिखती है जब उसे देखने वाले बच्चे विज्ञापन से मिले विचारों को लेकर बड़े हो चुके होते हैं और उस उत्पाद या विज्ञापनदाता को धन देने की हालत में आ जाते हैं.
धर्म के क्षेत्र में विज्ञापन का विचार नया नहीं है. इसका प्रयोग सदियों से होता आया है. धार्मिक विज्ञापनों के माध्यम से धन कमाने वालों की संताने आज अरबपति हैं. विज्ञापनों के ज़रिए धन चढ़ाने का भाव स्वयं में पैदा कर चुके लोग करोड़ों में हैं. रिटेल में पैसा चढ़ाने वाले ये लोग उन लोगों को इतना अमीर बनाते हैं कि आगे चल कर ख़ुद उनकी अमीरी का मुकाबला नहीं कर पाते. यह ठीक उसी प्रकार होता है जैसे फिल्में बनाने वाले अमीर हो जाते हैं और फिल्में देखने वाले केवल टिकट पर खर्च करते हैं. कहने का मतलब है कमाऊ और बड़ा कमाऊ होना अधिक ज़रूरी है.

इन दिनों फेसबुक पर देखा है कि मेघ बच्चे और स्याने देवी-देवताओं की रोचक और भयानक फोटो यहाँ-वहाँ पेस्ट करते हैं. ये फोटो अधिकतर भयानक होती हैं. यानि ये लोग उन चित्रों से प्रभावित हैं और अन्य को भी उससे प्रभावित करना चाहते हैं. यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि एक डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को अपने डर की ओर खींचता है.

ईश्वर से प्रार्थना है ये मेघ सज्जन पौराणिक कथाओं और देवी-देवताओं के भय से मुक्त हो जाएँ और इस बात को जानने की कोशिश करें कि इन धार्मिक प्रतीकों पर ध्यान देने के कारण गया हुआ पैसा अपने समुदाय के कल्याण के लिए कैसे वापस आ सकता है.


मेघों को ऐसा होना होगा कि  बचपन से ही उनकी सांसारिक विकास की तीसरी आँख खुली रहे.


Megh Bhagat


Monday, September 24, 2012

BAMCEF - बामसेफ




बामसेफ़ की स्थापना काशीराम (Kanshi Ram) और डी. के. खापर्डे (D.K. Khaparde) ने सन् 1973 में की थी. इस संस्था के सदस्य अनुसूचित जातियों, जनजातियों और ओबीसी से संबंधित सरकारी कर्मचारी हैं या ऐसे एससी, एसटी और ओबीसी कर्मचारी हैं जो अन्य धर्मों जैसे इस्लाम, सिख, ईसाई आदि की ओर जा चुके हैं. इन्हें मूलनिवासी (Mulnivasi) नाम से संगठित किया जा रहा है.

कई उतार चढ़ाव के बाद आज यह संस्था वामन मेश्राम के नेतृत्व में एक मज़बूत आधार पा चुकी है. बामसेफ़ का लक्ष्य है ब्राह्मणीकल व्यवस्था के बारे में लोगों को जागरूक करना और उसके विरुद्ध संघर्ष करने के लिए तैयार करना. बामसेफ सरकारी कर्मचारियों की संस्था है अतः आंदोलन करने की इसकी सीमाएँ हैं. इसे ध्यान में रख कर एक और संगठन का निर्माण किया गया है जिसे देश अब भारत मुक्ति मोर्चा के नाम से जानता है.
कल 23-09-2012 को चंडीगढ़ में बामसेफ का कार्यक्रम देखने का अवसर मिला. इसमें माननीय जे. एस. कश्यप, राष्ट्रीय महासचिव, भारत मुक्ति मोर्चा, नई दिल्ली को सुनना बहुत अच्छा अनुभव रहा. पहले पढ़ चुका था कि गाँधी ने पूना पैक्ट के ज़रिए कैसे दलितों के हितों पर कुठाराघात किया और महात्मा भी कहलाता रहा. साइमन कमिशन का विरोध करने वालों को हम देश भक्त मानते रहे और यह नहीं जान पाए कि उस विरोध के पीछे दलितों का ही विरोध था. पहली बार पता चला कि तिलक और गोखले जैसे लोग अंग्रेज़ों के खिलाफ़ क्यों बोलने लगे थे. उनकी स्वतंत्रता की अवधारणा का अर्थ था सत्ता और पैसे में हिस्सेदारी जो केवल ब्राह्मणों के लिए लक्षित थी. आज़ादी केवल पाकिस्तान को मिली थी. भारत को आज़ादी नहीं मिली बल्कि वह सत्ता का हस्तांतरण था जिसमें सत्ता ब्राह्मणों के हाथों में सौंप दी गई. इसका खुलासा प्रकारांतर से स्वाभिमान ट्रस्ट के राजीव दीक्षित ने भी किया है. शेष पढ़ा हुआ था कि काम निकलते ही कैसे गाँधी (जो जैन था) को कार्य मुक्त कर दिया गया.

जो बातें लोगों को पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती हैं उसके विरुद्ध तर्क को मन आसानी से स्वीकार नहीं करता. तथापि इस सत्र में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में जो कहा गया है वह प्रकाशित साहित्य में उपलब्ध है और उसमें तथ्य है. कुल मिला कर यह जानकारीपूर्ण सत्र था.

मा. जे. एस. कश्यप, राष्ट्रीय महासचिव, भारत मुक्ति मोर्चा
इस अवसर पर प्रदर्शित साहित्य

इस अवसर पर प्रदर्शित साहित्य


इस अवसर पर दी गई प्रैस विज्ञप्ति



 

Megh Bhagat

 


Monday, September 17, 2012

Aryans do not belong to Indus Valley Civilization – आर्य सिंधुघाटी सभ्यता के नहीं हैं.


जब महात्मा ज्योतिराव फुले ने 1880 के आसपास आर्य आक्रमणों का अपने तौर पर विवरण (जिसे फुले का 'बीजक' कहा जा सकता है) दिया तब से कई आर्यों/ब्राह्मणों ने इतिहास और साहित्य में मन वाँछित तर्क-कुतर्क से प्रमाणित करने की कोशिशें शुरू कर दीं कि आर्य सिंधुघाटी सभ्यता के ही हैं, न कि बाहर से आए हैं. बामसेफ (BAMCEF) के साहित्य में भी इस बात का खुल कर उल्लेख होने लगा कि आर्य बाहर से आए हैं और इनकी जड़ें भारत की नहीं हैं और न ही कभी इन्होंने भारत को अपनी भूमि माना. ये यहाँ के मूलनिवासियों के साथ आज तक घृणा का व्यवहार करते आए हैं. इन्होंने ही अन्य बाहरी आक्रमणकारियों जैसे मुग़लों, अंगरेज़ों आदि को यहाँ लूट मचाने के लिए उत्साहित किया और हर प्रकार से उनका साथ देते रहे. ऐतिहासिक रूप से यह प्रमाणित भी हो चुका है कि आर्य भारत के नहीं हैं. ये बाहर से आए हैं.

देश में आर्य जाति के विरुद्ध बन रहे वातावरण के कारण अब आर्यों द्वारा ऐसा साहित्य लिखा जा रहा है जो सिद्ध करने की कोशिश करता है कि आर्य भारत भूमि की संतानें हैं. इसके लिए इंटरनेट का जम कर प्रयोग किया जा रहा है.

इसी सिलसिले में अनार्यों (एससी, एसटी, ओबीसी आदि) की ओर से तर्क जुटाए गए हैं कि आर्य वास्तव में ही भारत के नहीं हैं और उन्होंने न केवल इस देश को लुटाया बल्कि लूटा भी है. और आज तक लूट रहे हैं.

इसी सिलसिले में फेस बुक के माध्यम से एक अकाट्य तर्क सामने आया है जो प्रदीप नागदेव के माध्यम से पहुँचा है :-

सिंधुघाटी की सभ्यता जिसे आर्य अपनी सभ्यता बता रहे हैं, यदि ये इनके बाप -दादा की सभ्यता है तो इन आर्यों से मेरा दावा है आप अपनी लिपि (सिंधुघाटी की) को आज तक पढ़ क्यों नही पाए? आर्य तो संस्कृत भाषी थे कितु ये सभ्यता संस्कृत भाषी नही थी. आर्यों से काफी विकसित और उन्नत सभ्यता थी. इन विकसित सभ्यता के लोगों को ये विदेशी आर्य, दैत्य, दानव, असुर और राक्षस कहते आ रहे हैं. क्योंकि इनकी सभ्यता आर्यों से भिन्न और विकसित तथा उन्नत भी थी, सिंधुघाटी के लोग नाग तथा प्रकृति की पूजा करते थे. खुदाई में आज तक कोई भी हिंदू देवी-देवताओं की मूर्ति नहीं मिली है. न ही आज तक सिंधुघाटी सभ्यता की लिपि को कोई आर्य पढ़ पाया है. फिर भी विदेशी आर्यों का इसे अपनी सभ्यता कहना पागलपन की हदें पार करना ही है. दरअसल सिंधुघाटी की सभ्यता आर्यों से पृथक है. इसी कारण आर्यों और सिन्धुघाटी सभ्यता के लोगों में दो भिन्न संस्कृति के कारण ही अनेकों युद्ध होते आये हैं. सिंधुघाटी के लोग, जिन्हें आर्य लोग, दैत्य, राक्षस, असुर, दानव कहते आ रहे हैं वे सब SC/ST/OBC के हमारे पूर्वज हैं जिन्हें आज भूदेवताओं ने शूद्र कहकर प्रचारित कर रखा है. सिंधुघाटी तथा मोहनजोदड़ो की विकसित और उन्नत सभ्यता हमारी सभ्यता है. जय भीम ......!!!! जय प्रबुद्ध भारत ....!!!! जय मूलनिवासी ...!!!!
इस पैरा में सिंधुघाटी सभ्यता की लिपि वाला तर्क ध्यान देने योग्य है. इसके अनुसार यदि आर्य जाति के लोग और उनके पूर्वज वाकई सिंधुघाटी के थे और उस भाषा/लिपि का प्रयोग करते थे जो वहाँ की खुदाई में मिली है तो वे उसे आज स्वयं ही पढ़ क्यों नहीं पाते? वे संस्कृत में लिखे वेदों को धरती का प्राचीनतम ग्रंथ कहते हैं. 

प्रमाण मिल चुके हैं कि सिंधुघाटी सभ्यता की लिपि सबसे पुरानी है जिसे डी-कोड करने के प्रयास अमेरिका आदि देशों में अभी हो रहे हैं. कंप्यूटरों की सहायता ली जा रही है. 

भारत में बसे आर्य अपनी ही भाषा-लिपि न पढ़ पाते हों यह हैरानगी की बात है. दूसरी ओर ये स्वयं को दुनिया की पहली पढ़ी-लिखी और संस्कृत, जिसे इन्होंने ईश्वरीय भाषा कह कर प्रचारित किया है, जानने वाली जाति कहते हैं. सिंधुघाटी या हड़प्पा सभ्यता को यदि इन्होंने ही विकसित किया था तो परंपरागत रूप से स्वयं को सदा शिक्षित कहने वाले आर्य अपनी लिपि कैसे भूल गए जबकि देवनागरी लिपि में लिखी संस्कृत इन्हें याद रह गई जिसे ये सबसे प्राचीन भाषा कहना नहीं भूलते.
इस बीच भारत में असुरों/राक्षसों को गोरे रंग का दिखाया जाने लगा है जैसे- रावण. पता नहीं अचानक काले रंग के असुर और राक्षस गोरे कैसे होने लगे. रावण जैसे असुर और राक्षस चरित्रों को सदियों से काले रंग का दिखाया जाता रहा है. अब रामायण पर बने सीरियलों में राम और रावण दोनों गोरे होते हैं जबकि राम काले थे. इस दृष्टि से राम के काले/श्याम होने का संकेतात्मक अर्थ यह निकलता है कि काले ने गोरे को हराया और मारा). 

इसका एक ही कारण हो सकता है कि राम काले थे ही और रावण, जिसे ब्राह्मण भी कहा जाता है, को कुछ ग्रंथों में आर्य लिखा लिया गया है. अब उस लिखे को निभा ले जाने में कतिपय कठिनाइयाँ हैं. कुछ आर्यों ने असुरों को आर्यों की ही एक जाति बताने के प्रयास शुरू कर दिए हैं जो हास्यास्पद है.

एक समय था जब राम और रावण दोनों का रंग काला दर्शाया जाता था. ऐसे ही कृष्ण और कंस और उसकी दूतियों का भी समझ लीजिए. कहा जाता रहा है कि आर्यों ने काले को काले के हाथों मरवा कर हमेशा अपना स्वार्थ साधा है. ऐसी तार्किक बातें अब पढ़े-लिखे (ब्राह्मण भी) कहने लगे हैं. कुछ सच्चाई का सामना करने की बजाय भय के कारण मिथकों को नए रंग देने के प्रयास में लगे हैं. इस प्रकार पौराणिक/ऐतिहसिक तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने-दरेड़ने का कार्य होने लगा है.

अब समय आ गया है कि ऐसी बातों को भूल कर ये आर्य या ब्राह्मण (जो देश की राजनीति, उद्योग, अफसरशाही, शिक्षा, न्याय व्यवस्था आदि में बहुतायत से बैठे हैं) देश में हो रहे भ्रष्टाचार को समाप्त करने में अधिक सहयोग करें. यदि वे इस देश को अपना मानने लगे हैं तो आम लोगों के लिए बनी विकास योजनाओं को उन तक पहुँचने दें. अपने पुराने कुंद हो चुके धार्मिक साहित्य पर अधिक ज़ोर न देकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवीयता अपनाएँ.  
  

Thursday, September 13, 2012

Third Front in dirty politics - गंदी राजनीति में तीसरा मोर्चा


भाजपा और कांग्रेस एक ही सिक्के के दो पहलू नहीं हैं बल्कि यह एक ही सिक्का है जिसके दोनों पहलू एक से हैं. 

इन दिनों मुलायम सिंह ने कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ संसद के बाहर कोयला घोटाले के विरुद्ध धरना दे कर एक संकेत दिया है जिसे बिना समय गँवाए मीडिया ने तीसरे मोर्चे का नाम और पता दे दिया है. मीडिया के पीछे बैठे लोगों की राजनीति देखने योग्य है.

तीसरे मोर्चे का नारा लगता रहता है. समय है कि अनुसूचित जातियाँ और जनजातियाँ अपने वोटों की एकता कर के प्रमाणित करें कि उनके बिना तीसरा मोर्चा अधूरा और खोखला है. यदि उनके बिना तीसरा फ्रंट बनता है तो दलित विपरीत परिस्थितियों के लिए तैयार रहें.

(इस बीच केजरीवाल की पार्टी, जिसका अभी नाम अभी नहीं रखा गया, उसे चौथा फ्रंट का नाम दैनिक भास्कर ने दे दिया है. शीघ्र ही ज़ी-चैनल भी कुछ कहने लगेगा.)

Megh Politics

 

 

Wednesday, September 5, 2012

Reservation in promotions – पदोन्नतियों में आरक्षण


आजकल पदोन्नतियों में आरक्षण का नाटक कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल खूब ज़ोर-शोर से कर रहे हैं. यह एससी/एसटी को ऐसी मृगतृष्णा की ओर ले जा सकता है जिसका कोई अंत नहीं. पहली बात तो यह है कि यह ऐसा प्रावधान है जो हमेशा न्यायालय में मात खा सकता है. इसमें अन्याय की इतनी गुंजाइश है कि जूनियर हो चुके व्यक्ति से सभी की सहानुभूति होगी. सरकार पर यह दबाव बनाना चाहिए कि वह नौकरियों में आरक्षण से आए कर्मचारियों/अधिकारियों की वरिष्ठता को बचाने के लिए समुचित मैकेनिज़्म/नीति बनाए ताकि उसे कार्यालयों का जातिवादी वातावरण हानि न पहुँचा सके.

पहले के प्रावधानों की सब से बड़ी कमज़ोरी यह है कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) को काफी कमज़ोर रखा गया है. आरक्षण संबंधी कोई नियम नहीं बनाए गए हैं. ऐसे में सरकार जो भी करेगी वह एक कमज़ोर कदम ही होगा. इसलिए इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों की सहमति और भी बड़ा धोखा है.
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06-09-2012
आज लालू प्रसाद यादव ने पदोन्नतियों में ओबीसी को भी आरक्षण देने की बात कह कर अपनी सारी समझदारी को सिर के बल खड़ा कर दिया है.

ओबीसी आरक्षण ने पहले ही नौकरियों में एससी/एसटी के पदों को अनारक्षित करने की गति दोगुनी कर दी है. इसे लेकर दलितों को ज़ोरदार विरोध दर्ज कराने की आवश्यकता होगी.
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तीसरी महत्वपूर्ण बात यह है सरकारी क्षेत्र में नौकरियाँ बहुत कम बची हैं. इन परिस्थितियों में यही परामर्श दिया जा सकता है कि निजी क्षेत्र में नौकरियों के लिए तैयारी की जाए. इसके लिए शिक्षा के ऊँचे स्तर की आवश्यकता होगी जिसके लिए बहुत पैसा चाहिए होगा. यहीं से अनुसूचित जातियों/जनजातियों का वास्तविक संघर्ष भी शुरू होता है.

बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए पैसा कहाँ से लाएँ या बचाएँ? पहले कुछ बचतें सुझाई जा सकती हैं, जैसे- सामाजिक दिखावे पर पैसा खर्च न करें. धार्मिक और वैवाहिक समागमों के लिए उधार न लें, भावुक हो कर धर्म के नाम पर दान न दें, यदि हो सके तो केवल उन्हीं धार्मिक संस्थाओं को दान दें जो आपके समुदाय के विकास कार्यों में सक्रिय हों. मनोरंजन के सामान्य और साधारण साधन प्रयोग करें. सभी प्रकार के नशे से बचें. परिवार के सभी सदस्य किसी न किसी कमाऊ गतिविधि में लगें. ये कदम बच्चों की शिक्षा के लिए निधियाँ जुटाने में निश्चित रूप से सहायक होंगे.

(याद रखें इस देश की धरती और आकाश पर आपका अधिकार है. आप स्वतंत्र देश के नागरिक हैं. आप यहाँ के मूलनिवासी हैं.)