पंजाब
में चुनाव आने वाले होते हैं
तो मेघ भगतों में एक बेचैनी
बढ़ने लगती है कि चुनाव के
प्रयोजन से उनके समुदाय में
एकता क्यों नहीं होती.
उनके
वोटों का समेकीकरण या ध्रुवीकरण
(consolidation
or polarisation) क्यों
नहीं होता.
इस
पर पहले भी मैंने पहले दो-एक
ब्लॉग लिखे थे.
इस
ब्लॉग की प्रेरणा फेसबुक से
मिली है.
फेसबुक
पर एक सज्जन भगत पवन कौशल मेरे
मित्र हैं.
उन्होंने
उल्लेख किया था कि कोई भी
राजनीतिक दल 'मेघों पर ध्यान नहीं देता' (अधिक स्पष्टता से कहें तो 'घास नहीं डालता').
उनकी
पोस्ट के उत्तर में मैंने
उन्हें सुझाव दिया कि मेघों
की अपनी खापें (गोत्र)
हैं,
निर्णय
लेने में उनकी सही भूमिका का
उपयोग बहुत कारगर हो सकता है.
लेकिन
समस्या यह है कि मेघों के टूट
चुके पंचायती सिस्टम को फिर
से खड़ा करने का कार्य कौन
करे.
इतिहासकार
बताते हैं कि मुग़लों के आने
से पहले भी हमारे यहाँ के
मेघवंशियों का अपना लोकतांत्रिक
सिस्टम और न्याय प्रणाली थी
जिसमें पंचायतों की भूमिका
बहुत महत्वपूर्ण थी.
मेघों
ने अपने जातीय समूहों में
अनुशासन और न्याय स्थापित रखने के लिए उक्त
प्रणाली का सदा सम्मान किया
जो उनके सामूहिक और राजनीतिक
विवेक की निशानी थी.
चूँकि
मेघों और जाटों का मूल एक समान दिखता है इस लिए जाटों की खापों
का उदाहरण देना समुचित होगा.
जाटों
की खापें आज भी जीवंत हैं और सक्रिय हैं.
जाटों
ने अपनी खापों का रचनात्मक
और राजनीतिक इस्तेमाल सफलतापूर्वक
किया है जिसका प्रभाव राजस्थान,
उत्तरप्रदेश,
पंजाब और पाकिस्तान तक में दिखता है.
ये
खापें सामाजिक क्षेत्र में
इस बात को सुनिश्चित करती हैं
कि एक ही गोत्र के लड़के-लड़कियों
में शादियाँ न हों या समाज के
आंतरिक विवादों का आपसी बातचीत
से हल निकाला जाए.
इस
परंपरा के अनुभव अच्छे रहे
हैं.
खापों
के नियम अनजाने में टूटे ना
हों ऐसा भी नहीं है.
लेकिन याद रखना चाहिए कि
जाटों ने अपनी खापों का सर्वाधिक और बढ़िया
प्रयोग अपनी शैक्षणिक संस्थाओं
के विकास और सामुदायिक विकास
कार्य के लिए
किया है.
उनकी खापों की महापंचायतें आयोजित
होती है. एक
दबाव समूह (Pressure
Group) के
तौर पर वे
पूरे राज्य की राजनीति को प्रभावित करते हैं.
उनकी बात सुनने के
लिए राजनीतिक
दल और उनकी अड़ियल सरकारें मजबूर होती हैं.
पंजाब में मेघों की संख्या जाटों जितनी नहीं है. फिर भी मेघों का इस
दिशा में कार्य करना
व्यर्थ नहीं जाएगा. वर्ष में दो बार गोत्रों
का जम्मू
में देरियों पर मिलन (मेल) होता है जो
पूर्वजों
की याद में और धार्मिक भावना
से होता है - लेकिन बिना किसी बड़े सामाजिक
और व्यावहारिक उद्देश्य के.
मेघों
में राजनीतिक जागरूकता लाने
के लिए इन मौकों का इस्तेमाल
सियासतदानों और समाज सेवियों को करना चाहिए.
इसमें
बहुत मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी.
गोत्र
के निर्णयों का प्रभाव जादुई
होता है,
यह
मानवजाति का अनुभूत सत्य है.
जब कोई
एक गोत्र पहलकदमी करके सफलता
प्राप्त करता है तो अन्य गोत्र भी
अनुकरण करने लगते हैं......और
जब सभी गोत्रों की सामूहिक ताकत एक दिशा में लगने लगती है
तो असंभव लगने वाले लक्ष्य प्राप्त होने लगते हैं.
धरती
का जीवन बदलने लगता है.
अन्य लिंक-
मेघवंश समुदायों में एकता क्यों नहीं होती
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