Thursday, November 15, 2012

BAMCEF-3 - बामसेफ-3


बामसेफ-बीएमएम चंडीगढ़ यूनिट की एक साप्ताहिक बैठक 04-11-2012 को अंबेडकर भवन, सैक्टर-37 ए, चंडीगढ़ में आयोजित हुई जिसमें भाग लेने का अवसर मिला. बामसेफ से मेरा संपर्क युवावस्था में हुआ था जब मैंने इसकी एक बैठक ए.जी. ऑफिस सैंक्टर-17 में देखी थी. बाद में माननीय काशीराम जी के देहत्याग के बाद बामसेफ काफी उतार-चढ़ाव में से गुज़री है. अब माननीय वामन मेश्राम के नेतृत्व में इसने काफी प्रगति की है और आरक्षण प्राप्त शूद्र और दलित कर्मचारियों के एक राष्ट्रव्यापी संगठन के रूप में जानी जाती है. बामसेफ दो समाचार पत्रों का प्रकाशन कर रही है. मूलनिवासी नायक जो दैनिक है और बहुजनों का बहुजन भारत जो साप्ताहिक है. इनका प्रकाशन लखनऊ और पुणे से हो रहा है.

प्रकाशनों से स्पष्ट होता है कि बामसेफ की एक सुस्पष्ट विचारधारा है जिसका वह प्रचार करती है और सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध है. इसके सामाजिक संगठन का नाम भारत मुक्ति मोर्चा है.




प्रतिभागी- (बैठे हुए बाएँ से) सुश्री संतोष, सर्वश्री दिलीप कुमार अंबेडकर, राजसिंह पारखी, हरिकृष्ण साप्ले, रामभूल सिंह, सतपाल, नंदलाल, अनिल यादव और जयप्रकाश,
(खड़े हुए) जेम्ज़ मसीह गिल, मनोज वर्मा, फूल सिंह, मल्लू राम, अयोध्या प्रसाद, कुलदीप माही, रामबहादुर पटेल और सुरेंद्र कुमार.


Friday, November 2, 2012

Too hurried for a third front – तीसरे मोर्चे के लिए हड़बड़ाहट


पिछले कई वर्ष से तीसरे मोर्चे की बाँग मीडिया दे रहा है लेकिन सवेरा है कि होने को नहीं आता.

कांग्रेस और बीजेपी के अलावा जो भी राजनीतिक दल हैं वे स्वयं को तीसरा मोर्चा बताते हैं या तीसरा मोर्चा बन-बन बैठते हैं. कुछ अन्य दलों को भी साथ बैठा लेते हैं ताकि तीसरे मोर्चे जैसा कुछ दिखे तो सही. तथापि जनता इन्हें तीसरा मोर्चा या राजनीतिक विकल्प नहीं मानती.

जनता को तीसरा मोर्चा चाहिए, इसे मीडिया सूँघ पा रहा है लेकिन वह अपनी पसंद की राजनीतिक पार्टी या पार्टियों को तीसरे मोर्चे के तौर पर पेश करता है. आम आदमी की अपेक्षाएँ मौजूदा पार्टियों के चेहरों से संतुष्ट नहीं हैं और मीडिया की मजबूरियाँ तो तीसरे प्रकार की हैं.

अभी तीसरा मोर्चा जनता के बीच कहीं अपना स्वरूप ग्रहण कर रहा है. उसकी रफ़्तार धीमी है. मीडिया इसके बारे में जानता है लेकिन इसकी बात न करने में अपनी भलाई समझता है. हर अख़बार और चैनल के अलग-अलग मालिक हैं और उनकी भाषा-बोली-मुहावरा अलग-अलग है.

हाल ही में मीडिया के एक ग्रुप ने अरविंद केजरीवाल की पार्टी (जिसका अभी नाम तक नहीं रखा गया) को तीसरा मोर्चा कहने में देरी नहीं की.

भारत की विशेष और अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद पब्लिक ने कम्युनिस्टों को कभी तीसरा मोर्चा नहीं माना. न ही वे समाजवादी पार्टी और वामपंथी दलों के संयुक्त स्वरूप को तीसरे मोर्चे के रूप में स्वीकार कर पा रही है.