Friday, November 2, 2012

Too hurried for a third front – तीसरे मोर्चे के लिए हड़बड़ाहट


पिछले कई वर्ष से तीसरे मोर्चे की बाँग मीडिया दे रहा है लेकिन सवेरा है कि होने को नहीं आता.

कांग्रेस और बीजेपी के अलावा जो भी राजनीतिक दल हैं वे स्वयं को तीसरा मोर्चा बताते हैं या तीसरा मोर्चा बन-बन बैठते हैं. कुछ अन्य दलों को भी साथ बैठा लेते हैं ताकि तीसरे मोर्चे जैसा कुछ दिखे तो सही. तथापि जनता इन्हें तीसरा मोर्चा या राजनीतिक विकल्प नहीं मानती.

जनता को तीसरा मोर्चा चाहिए, इसे मीडिया सूँघ पा रहा है लेकिन वह अपनी पसंद की राजनीतिक पार्टी या पार्टियों को तीसरे मोर्चे के तौर पर पेश करता है. आम आदमी की अपेक्षाएँ मौजूदा पार्टियों के चेहरों से संतुष्ट नहीं हैं और मीडिया की मजबूरियाँ तो तीसरे प्रकार की हैं.

अभी तीसरा मोर्चा जनता के बीच कहीं अपना स्वरूप ग्रहण कर रहा है. उसकी रफ़्तार धीमी है. मीडिया इसके बारे में जानता है लेकिन इसकी बात न करने में अपनी भलाई समझता है. हर अख़बार और चैनल के अलग-अलग मालिक हैं और उनकी भाषा-बोली-मुहावरा अलग-अलग है.

हाल ही में मीडिया के एक ग्रुप ने अरविंद केजरीवाल की पार्टी (जिसका अभी नाम तक नहीं रखा गया) को तीसरा मोर्चा कहने में देरी नहीं की.

भारत की विशेष और अनुकूल परिस्थितियों के बावजूद पब्लिक ने कम्युनिस्टों को कभी तीसरा मोर्चा नहीं माना. न ही वे समाजवादी पार्टी और वामपंथी दलों के संयुक्त स्वरूप को तीसरे मोर्चे के रूप में स्वीकार कर पा रही है. 

4 comments:

  1. मीडिया और तीसरा मोर्चा ...???
    शुभकामनायें आपको !

    ReplyDelete
    Replies
    1. सतीश भाई, आपने तो वह कहावत चरितार्थ कर दी कि जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि. मेरे इस ब्लॉग पर कभी-कभार कोई आता है. आप आए. आपका स्वागत. आपके प्रश्नचिह्न का स्वागत. मैं स्वयं कभी-कभी तीसरे मोर्चे के इस प्रश्न से बेज़ार हो जाता हूँ.

      Delete
  2. तीसरे मोर्चे की चर्चा तब हो जब पहला और दूसरा भी मौजूद हो।
    तथाकथित पहले और दूसरे मोर्चे पर तो मुर्चा - जंग - लग चुका है।

    ReplyDelete
  3. सही कह रहे है..जनता भी अब सतर्क होगई है...इन मोर्चों से अब कुछ नही होने वाला..

    ReplyDelete