Tuesday, July 12, 2016

Unity of Meghs and Khaps - मेघों की खापें और एकता

पंजाब में चुनाव आने वाले होते हैं तो मेघ भगतों में एक बेचैनी बढ़ने लगती है कि चुनाव के प्रयोजन से उनके समुदाय में एकता क्यों नहीं होती. उनके वोटों का समेकीकरण या ध्रुवीकरण (consolidation or polarisation) क्यों नहीं होता. इस पर पहले भी मैंने पहले दो-एक ब्लॉग लिखे थे. इस ब्लॉग की प्रेरणा फेसबुक से मिली है. 

फेसबुक पर एक सज्जन भगत पवन कौशल मेरे मित्र हैं. उन्होंने उल्लेख किया था कि कोई भी राजनीतिक दल मेघों को पर्याप्त रूप से ध्यान नहीं देता. उनकी पोस्ट के उत्तर में मैंने उन्हें सुझाव दिया कि मेघों की अपनी खापें (गोत्र) हैं, निर्णय लेने में उनकी सही भूमिका का उपयोग बहुत कारगर हो सकता है. लेकिन समस्या यह है कि मेघों के टूट चुके पंचायती सिस्टम को फिर से खड़ा करने का कार्य कौन करे.

इतिहासकार बताते हैं कि मुग़लों के आने से पहले भी हमारे यहाँ के मेघवंशियों का अपना लोकतांत्रिक सिस्टम और न्याय प्रणाली थी जिसमें पंचायतों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी. मेघों ने अपने जातीय समूहों में अनुशासन और न्याय के लिए उक्त प्रणाली का सदा सम्मान किया जो उनके सामूहिक और राजनीतिक विवेक की पराकाष्ठा थी. चूँकि मेघों और जाटों का मूल मेल खाता है इस लिए जाटों की खापों का उदाहरण देना समुचित होगा. जाटों की खापें आज भी सजीव हैं और गतिमान हैं. जाटों ने अपनी खापों का रचनात्मक और राजनीतिक इस्तेमाल सफलतापूर्वक किया है जिसका प्रभाव राजस्थान, उत्तरप्रदेश और पंजाब और पाकिस्तान में भी दिखता है.

ये खापें सामाजिक क्षेत्र में इस बात को सुनिश्चित करती हैं कि एक ही गोत्र के लड़के-लड़कियों में शादियाँ न हों या समाज के आंतरिक विवादों का आपसी बातचीत से हल निकल आए. इस परंपरा के अनुभव अच्छे रहे हैं. खापों के नियम अनजाने में टूटे ना हों ऐसा भी नहीं है. लेकिन हमें भूलना नहीं चाहिए कि जाटों ने अपनी खापों का सर्वाधिक प्रयोग अपनी शैक्षणिक संस्थाओं के विकास और सामुदायिक विकास के कार्य संपन्न करने के लिए किया है. कभी-कभी उनकी विभिन्न खापों की महापंचायत होती है जिसके निर्णय राजनीतिक भी होते हैं. वे पूरे राज्य की राजनीति को एक दबाव समूह (Pressure Group) के तौर पर प्रभावित करते हैं. उन दबाव समूहों की बात सुनने के लिए अड़ियल सरकारें और राजनीतिक दल भी मजबूर होते हैं.

इस दिशा में मेघों को कार्य करना चाहिए. संभव है यह कारगर हो. जम्मू में वर्ष में दो बार गोत्रों का मेल होता है - पूर्वजों की याद में और धार्मिक भावना से लेकिन बिना बड़े सामाजिक और व्यावहारिक उद्देश्य के. मेघों में राजनीतिक जागरूकता लाने के लिए इन मौकों का इस्तेमाल सियासतदानों को करना चाहिए. इसमें बहुत मशक्कत नहीं करनी पड़ेगी.

गोत्र के निर्णयों का प्रभाव जादुई होता है, यह मानवजाति का अनुभूत सत्य है. जब एक गोत्र कोई पहल करके सफलता प्राप्त करता है तो अन्य गोत्र अनुकरण करने लगते हैं......और जब सभी गोत्रों का सामूहिक बल एक दिशा में लगने लगता है तो असंभव दिखने वाले ध्येय सधने लगते हैं. धरती का जीवन बदलने लगता है.




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