Tuesday, October 30, 2012

Dalit Community (Today’s Valmikis) were mislead – दलित समुदाय (आज के वाल्मीकि) को गुमराह किया गया था



इसे पढ़ कर आपकी तीसरी आँख खुल जाएगी-

जब हम इतिहास का अवलोकन करते हेंतो 1925 से पहले हमें वाल्मीकि शब्द नहीं मिलता. सफाई कर्मचारियों और चूह्डों को हिंदू फोल्ड में बनाये रखने के उद्देश्य से उन्हें वाल्मीकि से जोड़ने और वाल्मीकि नाम देने की योजना बीस के दशक में आर्यसमाज ने बनाई थी. इस काम को जिस आर्यसमाजी पंडित ने अंजाम दिया थाउसका नाम अमीचंद शर्मा था. यह वही समय हैजब पूरे देश में दलित मुक्ति के आन्दोलन चल रहे थे. महाराष्ट्र में डा. आंबेडकर का हिंदू व्यवस्था के खिलाफ सत्याग्रहउत्तर भारत में स्वामी अछूतानन्द का आदि हिंदू आन्दोलन और पंजाब में मंगूराम मूंगोवालिया का आदधर्म आन्दोलन उस समय अपने चरम पर थे. पंजाब में दलित जातियां बहुत तेजी से आदधर्म स्वीकार कर रही थीं. आर्यसमाज ने इसी क्रांति को रोकने के लिए अमीचंद शर्मा को काम पर लगाया. योजना के तहत अमीचंद शर्मा ने सफाई कर्मचारियों के मोहल्लों में आना-जाना शुरू किया. उनकी कुछ समस्याओं को लेकर काम करना शुरू किया. शीघ्र ही वह उनके बीच घुल-मिल गया और उनका नेता बन गया. उसने उन्हें डा. आंबेडकरअछूतानन्द और मंगूराम के आंदोलनों के खिलाफ भडकाना शुरू किया. वे अनपढ़ और गरीब लोग उसके जाल में फँस गए. 1925 में अमीचंद शर्मा ने 'श्री वाल्मीकि प्रकाशनाम की किताब लिखीजिसमें उसने वाल्मीकि को उनका गुरु बताया और उन्हें वाल्मीकि का धर्म अपनाने को कहा. उसने उनके सामने वाल्मीकि धर्म की रूपरेखा भी रखी.

पूरा आलेख आप नीचे दिए लिंक से देख सकते हैं.

वाल्मीकि जयंती और दलित मुक्ति का प्रश्न

श्री वाल्मीकि प्रकाश