Friday, July 27, 2012

शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ आपके हाथें से और दूर जा रही हैं

25-07-2012 को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी का भाषण सुना. इसमें ग़रीबी और अशिक्षा दूर करने की बात थी. सुनने में बहुत अच्छा लगा.

इधर मैकाले सुधारों के बाद कपिल सिब्बलाना सुधारों का दौर आ गया है. निजी विश्वविद्यालय छा गए हैं. शिक्षा आम आदमी के हाथों से बाहर चली गई है. ऋण लें और पढ़ाई करें. गाँव के सरकारी स्कूलों में पढ़ें, सस्ता श्रम बनें. सभी विश्वविद्यालयों और राज्यों में एक-सा पाठ्यक्रम लागू नहीं, हिंदी तक का नहीं. कुल मिला कर सरकार सभी नागरिकों के लिए एक समान शिक्षा का प्रबंध करने के अपने दायित्व से बच रही है.

जहाँ तक ग़रीबी का सवाल है देश में फैला भ्रष्टाचार, कुपोषण से मरते बच्चे, महँगी होती शिक्षा, विदेशों में जमा कालाधन, लोकपाल पर सरकारी टालमटोल, ग्रामीण कपड़ा उद्योग का तबाह होना, देश में हिंदी लागू न होना एक ही एजेंडा की तस्वीरें हैं. अनपढ़ों के देश में यह व्यापक एजेंडा दर्जी ने नाप लेकर बनाया है.

तो क्या किया जाए?

चुनावों के दौरान शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को चुनावी मुद्दा बनाएँ. अपने नेताओं को पूछें कि सरकार ये सेवाएँ सस्ते दाम पर कब उपलब्ध कराएगी क्योंकि यह ड्यूटी सरकार की ही है. इसे चुनावी मुद्दा बनाने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं.




1 comment:

  1. आदरणीय भूषण जी हमारी सी पी आई (भाकपा)के एजेंडे मे शिक्षा के लिए कुल बजट का 06 प्रतिशत रखने का प्राविधान है कृपया लोगों का सहयोग हमे मिले ऐसी कामना करें। बाकी तो सभी पूंजीवादी पार्टियां जनता को अनपढ़ ही बनाना चाहती हैं।

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