बहुत देर के बाद आज बंजारा
समुदाय के बारे
में एक अच्छा खोजपूर्ण आलेख पढ़ने को मिला. 1963 में टोहाना प्रवास के
दौरान बंजारों को काफी नज़दीक से देखा है. इनकी भाषा के उच्चारण को ध्यान
से सुने तो ऐसी ध्वनियाँ सुनने में आती हैं जो पंजाबी मिश्रित हैं. इन
पर भारत के एक महान शोधकर्ता डब्ल्यू. आर. ऋषि (Padmashri W.R. Rishi) ने
काफी कार्य किया है (ऋषि जी से मिलने का मौका एक बार सै. 15-डी, चंडीगढ़ में मिला था
और उस छोटी सी मुलाकात में उनसे रोमा लोगों की भाषा के बारे में कुछ जानकारी मिली थी). ऋषि जी से संबंधित लिंक्स से ज्ञात होता
है कि रोमां और जिप्सियों के उत्थान के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयास हो रहे
हैं.
बंजारों को राजपूतों और जाटों का वंशज
माना जाता है. चूँकि अधिकतर दलित राजपूतों के वंशज हैं इस दृष्टि से मैं इन बंजारों-रोमां को
भी मेघवंशी कहता हूँ. वैसे भी अधिकतर दलित सूर्यवंशी हैं और इनके मूल को सूर्यवंशी (भगवान) रामचंद्र
के कुल में ढूंढा जाता है. इनकी वर्तमान दशा के बारे में ख़बरकोश.कॉम
ने एक बहुत अच्छा आलेख प्रकाशित किया है जो भारत के बंजारों की दशा
के बारे में बहुत कुछ बताता है. आलेख नीचे दिया गया है :-
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