Thursday, August 2, 2012

Communist parties are no alternative - साम्यवादी दल विकल्प नहीं हैं

मैं कम्युनिस्ट विचारधारा में विश्वास रखता हूँ लेकिन अमल नहीं करता. इसके कई कारण है. मेरे मस्तिष्क पर कई प्रकार के हिंदू संस्कारों का प्रभाव है जो बचपन से हैं और मुझे इस विचारधारा के साथ बहने से रोकते हैं.

यह सही है कि कम्युनिज़्म एक सरकारी प्रयोग के रूप में दुनिया भर में फैला. लेकिन एक हद तक जा कर यह असफल हो गया. लेकिन इसके पीछे वर्ग संघर्ष का एक सनातन तत्त्व है जिसने इसे पूर्णरूप से खारिज नहीं होने दिया.

कुछ भारतीय कम्युनिस्ट अब कहने लगे हैं कि 'साम्यवाद की विचारधारा वेदों में उपलब्ध है'. लेकिन इस पर विश्वास करना कठिन है. वेदवाद ने भारत में वामपंथ को किसी रूप में अपनाया हो इसका प्रमाण नहीं मिलता. वेदवाद भी धन अर्जन की प्रक्रिया रहा है और देश के अधिकांश मूलनिवासियों का भयंकर शोषण सदियों से होता चला आ रहा है. वेदों में 'शिवसंकल्प' (सकारात्मक सोच या positive thinking) का बखान है जो व्यक्ति के लिए बहुत उपयोगी है लेकिन वामपंथ के राजनीतिक अर्थ और संदर्भ में वेदविचार को स्वीकार करना असंभव ही है.

भारत में वामपंथी राजनीतिक दलों का बंगाल और केरल जैसे राज्यों में बोलबाला रहा है. हाल ही में बंगाल में इनकी हार हुई है. इस हार के लिए एक ओर नक्सलवाद ज़िम्मेदार है और दूसरी ओर इन दलों का ब्राह्मणीकल नेतृत्व भी. लेकिन यह स्पष्ट है कि इनसे लोगों का मोहभंग हुआ है. हर रोज़ की मज़दूर संघों की हड़तालों से तंग आए लोगों ने इन्हें अपना समर्थन कम किया. मज़दूर संघों के रवैये के कारण उद्योग का न पनप पाना और रोज़गार के अवसरों में कमी आना भी इसका कारण रहा है.

शिक्षा और राजनीतिक जागरूकता ही बेहतर तरीके का कम्युनिज़्म देश में ला सकते हैं. कम्युनिज़्म की सामाजिक और राजनीतिक क्रांति की अवधारणा हिंसा से मुक्त नहीं है. बेहतर है कि विवेकपूर्वक तरीके से समाज के हर वर्ग का विकास किया जाए. पैसे वाले मानव समूहों को हिंसात्मक पटखनी देने के बजाय संपूर्ण समाज को विकास की एक निश्चित दिशा देना अच्छा है. 

कांग्रेस और भाजपा जैसे दलों से अब लोगों को अधिक उम्मीद नहीं है और साथ ही वे कम्युनिस्ट दलों से दूर रहने में भलाई समझते हैं.

तीसरे मोर्चे की बात करना आजकल एक फैशन हो गया है. तीसरा मोर्चा एक फैलाया गया भ्रम मात्र है. चुनावों में पैसे का इतना बोलबाबा है कि फिलहाल तीसरे मोर्चे को भारत के धनतंत्र का समर्थन मिलना कठिन है और भूमिका उसी की प्रमुख होती है.

भविष्य में तीसरा या चौथा मोर्चा बनेगा ज़रूर लेकिन उसके स्वरूप ग्रहण करने में अभी समय है.   


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