मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को स्वीकार
करने के बाद सारे उत्तर भारत में विरोध प्रदर्शन हुए जिसमें अनपढ़ और डरे हुए पिछड़े
भी आरक्षण के विरोध में आत्महत्या का खेल खेलते देखे गए. शायद उन्हें लग रहा था कि
वे अगड़ों में शामिल हो चुके थे.
भारत के बिकाऊ मीडिया को बिकने के लायक मसाला
मिल गया और उसका जातिवादी और मनुवादी चेहरा और भी स्पष्ट रूप में सामने आया. उस
समय पिछड़े बोलने की हालत में नहीं थे. उधर अनुसूचित जातियों पर मानसिक दबाव बढ़ा
दिया गया. आज पिछड़े बोलने की हालत में हैं. कुछ राज्यों में उन्होंने अपने वोट
बैंक को संगठित किया है. शरद यादव, लालू प्रसाद यादव,
नितीश कुमार,
मुलायम सिंह यादव और उनके बेटे अखिलेश
यादव, स्वामी रामदेव, अन्ना हज़ारे एक लय में कार्य करते नज़र आते हैं. इसका श्रेय
तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को जाता है.
लेकिन पता नहीं क्यों ये ओबीसी अचानक सत्ता के
मद में इतना बह गए कि भारत के पिछड़े समाज के समग्र उत्थान का संकेत भुला बैठे. विश्वनाथ प्रताप सिंह के बनाए चौड़े रास्ते के प्रति श्रद्धा और विश्वास
रखना श्रेयस्कर होगा. अन्यथा यही समझा जाएगा कि इन्होंने ग़ुलामी की मानसिकता से अभी
छुटकारा नहीं पाया है.
होना तो यह चाहिए कि पिछडे, दलित और जनजातियाँ (OBCs, SCs and STs) 07अगस्त को ‘सामाजिक न्याय दिवस’ के रूप में मनाएँ और श्री विश्वनाथ
प्रताप सिंह को याद करें जिन्होंने सामाजिक न्याय के लिए स्वयं को एक बड़ी लड़ाई
में झोंक दिया था और उस संघर्ष को जन्म दिया जो आगे चल भारत के सामाजिक-राजनीतिक स्वरूप
को बदलने वाला है. और भी अच्छा हो यदि ये सभी मिल कर ज्योतिबा फुले और डॉ. अंबेडकर के प्रयासों को भी उतनी ही श्रद्धा से इस दिन याद करें.
Megh Politics
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