भारत में आंदोलन
हुए हैं. उनकी परंपरा पुरानी है. टीवी पर देखते हैं कि विदेशों में आंदोलन हुए और 50
वर्ष में विश्व का नक्शा बदल गया. यह वहाँ के लोगों का दृढ़ इच्छा
शक्ति से हुआ.
मेरा
ध्यान आंदोलनकारियों
की बॉडी लैंग्वेज पर गया. विशेष कर उनके पूरे खुले मुँह की ओर जब वे सड़क
पर उत्साह और कुछ पा लेने के जुनून के साथ सड़कों पर उतरते हैं. उनकी
आवाज़ें शासकों
के दिलों को हिला देती हैं. क्या भारत में ऐसे कोई मुद्दे हैं जिनके लिए
जनता सड़कों पर उतरे? हाँ, हैं. महँगी शिक्षा और चिकित्सा. जिनके पास
धन है वे इस पर विचार नहीं करते. ये मुद्दे भारत की दलित जातियों और ग़रीब तबकों के
हैं. सरकार नहीं चाहेगी कि देश में सस्ता श्रम की कभी कोई कमी आए. अपने उत्थान के लिए इन्हें स्वयं कभी न कभी सड़कों पर उतरना होगा.
फिलहाल आप इन चित्रों
को देखें कि समय को बदलने के लिए आंदोलनकारियों में कैसे जुनून की आवश्यकता होती
है. पूरा मुँह खोलने का व्यायाम करना अच्छा ही होगा.