बस में कार्यालय जाते समय रास्ते में एक हवेली आती थी जिसके बाहर बहुत बड़े बोर्ड पर लिखा था- ‘बालब्रह्मचारिणी विषकन्या योगिनी’. इसकी ओर ध्यान खिंचता था. एक दिन अपने सहकर्मी मूर्ति (एक ब्रह्मण) को कहा, “देखिए भाई साहब, यह नाम कितना रोचक और भयानक लगता है.” उन्होंने तुरत कहा, “जी हाँ, और आकर्षित भी करता है.”
धर्म किसी मानवोचित गुण को धारण करने का नाम है. लेकिन रोचक और भयानक धार्मिक कथाओं/चित्रों के साथ किसी को आकर्षित करना उससे जुड़ी एक प्रकार की दूकानदारी है, ठीक उसी प्रकार जैसे फिल्मों और टीवी सीरियलों का व्यापार. आकर्षक और रोचक विज्ञापन बनाना और उसे बार-बार दिखा कर लोगों, विशेषकर बच्चों के मन को आकर्षित/प्रभावित करना दार्घावधि में व्यापार को बढ़ाता और धन लाता है.
एक विज्ञापन की वास्तविक सफलता 25-30 वर्ष बाद दिखती है जब उसे देखने वाले बच्चे विज्ञापन से मिले विचारों को लेकर बड़े हो चुके होते हैं और उस उत्पाद या विज्ञापनदाता को धन देने की हालत में आ जाते हैं.
धर्म के क्षेत्र में विज्ञापन का विचार नया नहीं है. इसका प्रयोग सदियों से होता आया है. धार्मिक विज्ञापनों के माध्यम से धन कमाने वालों की संताने आज अरबपति हैं. विज्ञापनों के ज़रिए धन चढ़ाने का भाव स्वयं में पैदा कर चुके लोग करोड़ों में हैं. रिटेल में पैसा चढ़ाने वाले ये लोग उन लोगों को इतना अमीर बनाते हैं कि आगे चल कर ख़ुद उनकी अमीरी का मुकाबला नहीं कर पाते. यह ठीक उसी प्रकार होता है जैसे फिल्में बनाने वाले अमीर हो जाते हैं और फिल्में देखने वाले केवल टिकट पर खर्च करते हैं. कहने का मतलब है कमाऊ और बड़ा कमाऊ होना अधिक ज़रूरी है.
धर्म के क्षेत्र में विज्ञापन का विचार नया नहीं है. इसका प्रयोग सदियों से होता आया है. धार्मिक विज्ञापनों के माध्यम से धन कमाने वालों की संताने आज अरबपति हैं. विज्ञापनों के ज़रिए धन चढ़ाने का भाव स्वयं में पैदा कर चुके लोग करोड़ों में हैं. रिटेल में पैसा चढ़ाने वाले ये लोग उन लोगों को इतना अमीर बनाते हैं कि आगे चल कर ख़ुद उनकी अमीरी का मुकाबला नहीं कर पाते. यह ठीक उसी प्रकार होता है जैसे फिल्में बनाने वाले अमीर हो जाते हैं और फिल्में देखने वाले केवल टिकट पर खर्च करते हैं. कहने का मतलब है कमाऊ और बड़ा कमाऊ होना अधिक ज़रूरी है.
इन दिनों फेसबुक पर देखा है कि मेघ बच्चे और स्याने देवी-देवताओं की रोचक और भयानक फोटो यहाँ-वहाँ पेस्ट करते हैं. ये फोटो अधिकतर भयानक होती हैं. यानि ये लोग उन चित्रों से प्रभावित हैं और अन्य को भी उससे प्रभावित करना चाहते हैं. यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि एक डरा हुआ व्यक्ति दूसरों को अपने डर की ओर खींचता है.
ईश्वर से प्रार्थना है ये मेघ सज्जन पौराणिक कथाओं और देवी-देवताओं के भय से मुक्त हो जाएँ और इस बात को जानने की कोशिश करें कि इन धार्मिक प्रतीकों पर ध्यान देने के कारण गया हुआ पैसा अपने समुदाय के कल्याण के लिए कैसे वापस आ सकता है.
Megh Bhagat
मेघों को ऐसा होना होगा कि बचपन से ही उनकी सांसारिक विकास की तीसरी आँख खुली रहे. |