आजकल
पदोन्नतियों में आरक्षण का नाटक कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दल खूब ज़ोर-शोर से कर
रहे हैं. यह एससी/एसटी को ऐसी मृगतृष्णा की ओर ले जा सकता है जिसका कोई अंत नहीं.
पहली बात तो यह है कि यह ऐसा प्रावधान है जो हमेशा न्यायालय में मात खा सकता है. इसमें
अन्याय की इतनी गुंजाइश है कि जूनियर हो चुके व्यक्ति से सभी की सहानुभूति होगी.
सरकार पर यह दबाव बनाना चाहिए कि वह नौकरियों में आरक्षण से आए कर्मचारियों/अधिकारियों
की वरिष्ठता को बचाने के लिए समुचित मैकेनिज़्म/नीति बनाए ताकि उसे कार्यालयों का जातिवादी वातावरण
हानि न पहुँचा सके.
पहले
के प्रावधानों की सब से बड़ी कमज़ोरी यह है कि संविधान के अनुच्छेद 16(4) को काफी
कमज़ोर रखा गया है. आरक्षण संबंधी कोई नियम नहीं बनाए गए हैं. ऐसे में सरकार जो भी
करेगी वह एक कमज़ोर कदम ही होगा. इसलिए इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों की सहमति और भी
बड़ा धोखा है.
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ओबीसी
आरक्षण ने पहले ही नौकरियों में एससी/एसटी के पदों को अनारक्षित करने की गति दोगुनी
कर दी है. इसे लेकर दलितों को ज़ोरदार विरोध दर्ज कराने की आवश्यकता होगी.
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06-09-2012
आज
लालू प्रसाद यादव ने पदोन्नतियों में ओबीसी को भी आरक्षण देने की बात कह कर अपनी
सारी समझदारी को सिर के बल खड़ा कर दिया है.
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तीसरी
महत्वपूर्ण बात यह है सरकारी क्षेत्र में नौकरियाँ बहुत कम बची हैं. इन
परिस्थितियों में यही परामर्श दिया जा सकता है कि निजी क्षेत्र में नौकरियों के
लिए तैयारी की जाए. इसके लिए शिक्षा के ऊँचे स्तर की आवश्यकता होगी जिसके लिए बहुत
पैसा चाहिए होगा. यहीं से अनुसूचित जातियों/जनजातियों का वास्तविक संघर्ष भी शुरू
होता है.
बच्चों
की उच्च शिक्षा के लिए पैसा कहाँ से लाएँ या बचाएँ? पहले कुछ बचतें सुझाई जा सकती हैं,
जैसे- सामाजिक दिखावे पर पैसा खर्च न करें. धार्मिक और वैवाहिक समागमों के लिए
उधार न लें, भावुक हो कर धर्म के नाम पर दान न दें, यदि हो सके तो केवल उन्हीं धार्मिक
संस्थाओं को दान दें जो आपके समुदाय के विकास कार्यों में सक्रिय हों. मनोरंजन के
सामान्य और साधारण साधन प्रयोग करें. सभी प्रकार के नशे से बचें. परिवार के सभी
सदस्य किसी न किसी कमाऊ गतिविधि में लगें. ये कदम बच्चों की शिक्षा के लिए निधियाँ जुटाने में निश्चित रूप से सहायक होंगे.
(याद रखें इस देश की धरती और आकाश पर आपका अधिकार है. आप स्वतंत्र
देश के नागरिक हैं. आप यहाँ के मूलनिवासी हैं.)
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