जब महात्मा ज्योतिराव
फुले ने 1880 के आसपास आर्य आक्रमणों का अपने तौर पर विवरण (जिसे फुले का 'बीजक' कहा जा सकता है) दिया तब से कई आर्यों/ब्राह्मणों ने इतिहास और साहित्य
में मन वाँछित तर्क-कुतर्क से प्रमाणित करने की कोशिशें शुरू कर दीं कि आर्य
सिंधुघाटी सभ्यता के ही हैं, न कि बाहर से आए हैं. बामसेफ (BAMCEF) के साहित्य में
भी इस बात का खुल कर उल्लेख होने लगा कि आर्य बाहर से आए हैं और इनकी जड़ें भारत
की नहीं हैं और न ही कभी इन्होंने भारत को अपनी भूमि माना. ये यहाँ के
मूलनिवासियों के साथ आज तक घृणा का व्यवहार करते आए हैं. इन्होंने ही अन्य बाहरी आक्रमणकारियों
जैसे मुग़लों, अंगरेज़ों आदि को यहाँ लूट मचाने के लिए उत्साहित किया और हर प्रकार
से उनका साथ देते रहे. ऐतिहासिक रूप से यह प्रमाणित भी हो चुका है कि आर्य भारत के
नहीं हैं. ये बाहर से आए हैं.
देश में आर्य जाति के विरुद्ध बन रहे वातावरण के कारण अब आर्यों द्वारा ऐसा साहित्य लिखा
जा रहा है जो सिद्ध करने की कोशिश करता है कि आर्य भारत भूमि की संतानें
हैं. इसके लिए इंटरनेट का जम कर प्रयोग किया जा रहा है.
इसी सिलसिले में अनार्यों (एससी, एसटी, ओबीसी आदि) की ओर से तर्क
जुटाए गए हैं कि आर्य वास्तव में ही भारत के नहीं हैं और उन्होंने न केवल इस देश
को लुटाया बल्कि लूटा भी है. और आज तक लूट रहे हैं.
इसी सिलसिले में फेस बुक के माध्यम से एक अकाट्य तर्क सामने आया है जो
प्रदीप नागदेव के
माध्यम से पहुँचा है :-
“सिंधुघाटी
की सभ्यता जिसे आर्य अपनी सभ्यता बता रहे हैं, यदि
ये इनके बाप -दादा
की सभ्यता है तो इन आर्यों से मेरा दावा
है आप अपनी लिपि (सिंधुघाटी की) को
आज तक पढ़ क्यों नही पाए? आर्य
तो संस्कृत भाषी थे कितु ये सभ्यता
संस्कृत भाषी नही थी.
आर्यों से काफी विकसित और उन्नत सभ्यता
थी. इन विकसित सभ्यता के लोगों को ये विदेशी
आर्य, दैत्य, दानव, असुर और राक्षस कहते आ रहे हैं. क्योंकि इनकी सभ्यता आर्यों से भिन्न और विकसित तथा उन्नत भी थी, सिंधुघाटी के लोग नाग तथा प्रकृति की पूजा करते थे. खुदाई में आज तक कोई भी हिंदू देवी-देवताओं
की मूर्ति नहीं
मिली है. न ही आज तक सिंधुघाटी सभ्यता की लिपि को
कोई आर्य पढ़ पाया है.
फिर भी विदेशी आर्यों का इसे अपनी
सभ्यता कहना पागलपन की हदें पार
करना ही है.
दरअसल सिंधुघाटी की सभ्यता आर्यों से
पृथक है. इसी कारण
आर्यों और सिन्धुघाटी सभ्यता के लोगों
में दो भिन्न संस्कृति के कारण ही अनेकों
युद्ध होते आये हैं.
सिंधुघाटी के लोग, जिन्हें आर्य लोग, दैत्य, राक्षस, असुर, दानव
कहते आ रहे हैं वे सब SC/ST/OBC
के हमारे पूर्वज हैं जिन्हें आज भूदेवताओं ने शूद्र कहकर
प्रचारित कर रखा है. सिंधुघाटी तथा मोहनजोदड़ो की विकसित और उन्नत
सभ्यता हमारी सभ्यता है.
जय भीम ......!!!! जय
प्रबुद्ध भारत ....!!!! जय मूलनिवासी ...!!!!”
इस
पैरा में सिंधुघाटी सभ्यता की लिपि वाला तर्क ध्यान देने योग्य है. इसके
अनुसार यदि आर्य जाति के लोग और उनके पूर्वज वाकई सिंधुघाटी के थे और उस भाषा/लिपि
का प्रयोग करते थे जो वहाँ की खुदाई में मिली है तो वे उसे आज स्वयं ही पढ़ क्यों नहीं
पाते? वे संस्कृत में लिखे वेदों को धरती का प्राचीनतम ग्रंथ
कहते हैं.
प्रमाण मिल चुके हैं कि सिंधुघाटी सभ्यता की लिपि सबसे पुरानी है जिसे डी-कोड करने के प्रयास अमेरिका आदि देशों में अभी हो रहे हैं. कंप्यूटरों की सहायता ली जा रही है.
भारत में बसे आर्य अपनी ही भाषा-लिपि न पढ़ पाते हों यह हैरानगी की बात है. दूसरी ओर ये स्वयं को दुनिया की पहली पढ़ी-लिखी और संस्कृत, जिसे इन्होंने ईश्वरीय भाषा कह कर प्रचारित किया है, जानने वाली जाति कहते हैं. सिंधुघाटी या हड़प्पा सभ्यता को यदि इन्होंने ही विकसित किया था तो परंपरागत रूप से स्वयं को सदा शिक्षित कहने वाले आर्य अपनी लिपि कैसे भूल गए जबकि देवनागरी लिपि में लिखी संस्कृत इन्हें याद रह गई जिसे ये सबसे प्राचीन भाषा कहना नहीं भूलते.
प्रमाण मिल चुके हैं कि सिंधुघाटी सभ्यता की लिपि सबसे पुरानी है जिसे डी-कोड करने के प्रयास अमेरिका आदि देशों में अभी हो रहे हैं. कंप्यूटरों की सहायता ली जा रही है.
भारत में बसे आर्य अपनी ही भाषा-लिपि न पढ़ पाते हों यह हैरानगी की बात है. दूसरी ओर ये स्वयं को दुनिया की पहली पढ़ी-लिखी और संस्कृत, जिसे इन्होंने ईश्वरीय भाषा कह कर प्रचारित किया है, जानने वाली जाति कहते हैं. सिंधुघाटी या हड़प्पा सभ्यता को यदि इन्होंने ही विकसित किया था तो परंपरागत रूप से स्वयं को सदा शिक्षित कहने वाले आर्य अपनी लिपि कैसे भूल गए जबकि देवनागरी लिपि में लिखी संस्कृत इन्हें याद रह गई जिसे ये सबसे प्राचीन भाषा कहना नहीं भूलते.
इस
बीच भारत में असुरों/राक्षसों को गोरे रंग का दिखाया जाने लगा है जैसे- रावण. पता नहीं
अचानक काले रंग के असुर और राक्षस गोरे कैसे होने लगे. रावण जैसे असुर और राक्षस चरित्रों
को सदियों से काले रंग का दिखाया जाता रहा है. अब रामायण पर बने सीरियलों में राम और रावण दोनों
गोरे होते हैं जबकि राम काले थे. इस दृष्टि से राम के काले/श्याम होने का संकेतात्मक अर्थ यह निकलता है कि काले ने गोरे को हराया और मारा).
इसका एक ही कारण हो सकता है कि राम काले थे ही और रावण, जिसे ब्राह्मण भी कहा जाता है, को कुछ ग्रंथों में आर्य लिखा लिया गया है. अब उस लिखे को निभा ले जाने में कतिपय कठिनाइयाँ हैं. कुछ आर्यों ने असुरों को आर्यों की ही एक जाति बताने के प्रयास शुरू कर दिए हैं जो हास्यास्पद है.
इसका एक ही कारण हो सकता है कि राम काले थे ही और रावण, जिसे ब्राह्मण भी कहा जाता है, को कुछ ग्रंथों में आर्य लिखा लिया गया है. अब उस लिखे को निभा ले जाने में कतिपय कठिनाइयाँ हैं. कुछ आर्यों ने असुरों को आर्यों की ही एक जाति बताने के प्रयास शुरू कर दिए हैं जो हास्यास्पद है.
एक
समय था जब राम और रावण दोनों का रंग काला दर्शाया जाता था. ऐसे ही कृष्ण और कंस और उसकी दूतियों का भी समझ लीजिए. कहा
जाता रहा है कि आर्यों ने काले को काले के हाथों मरवा कर हमेशा अपना स्वार्थ साधा
है. ऐसी तार्किक बातें अब पढ़े-लिखे (ब्राह्मण भी) कहने लगे हैं. कुछ सच्चाई का सामना करने की
बजाय भय के कारण मिथकों को नए रंग देने के प्रयास में लगे हैं. इस प्रकार पौराणिक/ऐतिहसिक तथ्यों को तोड़ने-मरोड़ने-दरेड़ने का कार्य होने लगा है.
अब
समय आ गया है कि ऐसी बातों को भूल कर ये आर्य या ब्राह्मण (जो देश की राजनीति, उद्योग, अफसरशाही, शिक्षा, न्याय व्यवस्था आदि में बहुतायत से बैठे हैं) देश में हो रहे भ्रष्टाचार को समाप्त करने में अधिक सहयोग करें. यदि वे इस देश को अपना मानने लगे हैं तो आम लोगों के लिए बनी विकास योजनाओं को उन
तक पहुँचने दें. अपने पुराने कुंद हो चुके धार्मिक साहित्य पर अधिक ज़ोर न देकर वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवीयता अपनाएँ.
Navin Bhoiya via Face Book
ReplyDeleteShri Pradeep Nagdev ne bahot hi badiya tark dekar sidhdh kar diya hai ke Arya Videshi hai. Agar deshi hote to Sindhu Ghati Sabhyata ki lipi abtak decode ho chuki hoti. Bahut Badiya Sir Jee. Jay Bheem, Jay Megh.
In his 'Satyarth Prakash' Swami Dayananda, the founder of Arya Samaj Movement has admitted the fact that Aryans belonged to foriegn land and settled in India.
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