ऑल
इंडिया मेघ सभा, चंडीगढ़ द्वारा प्रकाशित की जाने वाली पत्रिका ‘मेघ चेतना’ का निरंतर प्रकाशन एक प्रशंसनीय कार्य
है. इस प्रकार की सामुदायिक पत्रिकाओं से व्यावसायिक पत्रिकाओं जैसी आकर्षक और अदोष
सामग्री की आशा नहीं की जाती लेकिन इस बात की अपेक्षा की जा सकती है वे समुदाय की
गतिविधियों का निर्दोष आईना अवश्य बने.
कल ही इस पत्रिका के प्रधान संपादक श्री निर्मल चंदर भगत से इसका मई-जुलाई 2012 का अंक मिला. इस अंक में प्रकाशित ‘संपादकीय’ इस पत्रिका की लंबी यात्रा का एक मील का पत्थर है.
देश भर में ‘मेघ ऋषि’ को मानने वाली संतानें करोड़ों हैं लेकिन भौगोलिक, ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से वे सदियों से एक दूसरे को पहचानने में भूल करती आई हैं. कभी जाति के नाम पर, कभी भाषा और व्यवसाय के नाम पर वे बँटी हुई दिखती हैं. शिक्षा और नई जानकारियाँ प्राप्त होने के बाद अब उनकी नज़दीकियाँ और मेल-मिलाप बढ़ा है.
कल ही इस पत्रिका के प्रधान संपादक श्री निर्मल चंदर भगत से इसका मई-जुलाई 2012 का अंक मिला. इस अंक में प्रकाशित ‘संपादकीय’ इस पत्रिका की लंबी यात्रा का एक मील का पत्थर है.
देश भर में ‘मेघ ऋषि’ को मानने वाली संतानें करोड़ों हैं लेकिन भौगोलिक, ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से वे सदियों से एक दूसरे को पहचानने में भूल करती आई हैं. कभी जाति के नाम पर, कभी भाषा और व्यवसाय के नाम पर वे बँटी हुई दिखती हैं. शिक्षा और नई जानकारियाँ प्राप्त होने के बाद अब उनकी नज़दीकियाँ और मेल-मिलाप बढ़ा है.
संपादकीय - इस चित्र पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है. |
प्रत्येक बड़े कार्य की एक छोटी शुरुआत आवश्यक होती है. वह शुरुआत हो चुकी हुई है. आशा है इस
संपादकीय पर प्रतिकूल प्रतिक्रियाएँ आएँगी. उन्हें जानकारी के साथ खारिज करना होगा. मैं
इस संपादकीय को एक बड़े कार्य की दिशा में सार्थक प्रयास की तरह देखता
हूँ.
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