Wednesday, June 20, 2012

BJP and Dalits - भाजपा और दलित


पिछले 65 वर्षों से मेघवंशी दलित कांग्रेस को माँ मान कर उसके चरणों में लोटते रहे हैं.

अंग्रेज़ों से सत्ता हस्तांतरित होकर कांग्रेसियों के पास आने के कारण और उस समय कांग्रेस का सशक्त विकल्प न होने के कारण कोई अन्य गोद नहीं थी जिसमें ये बैठने की कोशिश करते. लेकिन दूध पिलाना तो दूर कांग्रेस ने इन्हें कभी ढँग से पास में बिठाया भी नहीं. इनके पास पैसा और पार्टी फंड नहीं था. केवल वोट था जिसे सस्ते में लेकर इस पार्टी ने वोटर को भूल जाना बेहतर समझा. अति ग़रीब समुदायों की स्थिति नहीं बदली. धीरे-धीरे इनकी निराशा बढ़ती गई.

जम्मू-कश्मीर में मेघ समुदाय के सामाजिक स्तर को बेहतर बनाने में राजा हरि सिंह का बहुत बड़ा हाथ रहा है. लेकिन वहाँ के कार-ए-बेगार कानून (यह कानून हिंदू समुदायों को कानूनन यह हक देता था कि वे मेघों को बिना किसी तरह की पगार दिए उनसे कोई भी काम ले सकते थे) के पश्चप्रभावों (after effects) से जूझ रहे मेघों की अधिकांश संख्या को अभी तक आर्थिक विकास का मुँह देखना नसीब नहीं हुआ. हालाँकि वे पंजाब के मेघों के मुकाबले अब अधिक शिक्षित हैं और अधिक उन्नति कर चुके हैं, राजनीतिक रूप से भी. 

भारत विभाजन के बाद स्यालकोट से जालंधर और पंजाब के अन्य शहरों में आकर बसे मेघों को दोहरी मार पड़ी. वहाँ अंग्रेज़ों के राज में इनके लिए जो रोज़गार के अवसर बने थे वे अचानक समाप्त हो गए. भारत में आकर फिर से इन्हें न केवल प्रतिदिन की रोटी के लिए जूझना पड़ा बल्कि जात-पात को नई जगह और नए माहौल में झेलना पड़ा. यह मानना इनकी नियति थी कि जिस कांग्रेस को सत्ता दी गई है शायद वही इनकी नैया को पार लगाएगी. अंग्रेज़ों द्वारा दिए गए आरक्षण का श्रेय अब कांग्रेस को दिया जाने लगा या कहें कि कांग्रेस उस श्रेय को बटोरने लगी.

इस बीच भारत की राजनीति का चेहरा बहुत बदल गया है. जनसंघ से लेकर भाजपा तक एक हिंदूवादी विचारधारा विकसित हुई जिसे दलित संदेह की दृष्टि से देखते रहे हैं क्योंकि हिंदू धर्म के नाम से चल रही छुआछूत को जनसंघ से जोड़ कर भी देखा जाता रहा और भाजपा से भी. इस बीच लोकनायक जय प्रकाश नारायण के आंदोलन के बाद जो जनता पार्टी अस्तित्व में आई उसने जनसंघ की कट्टर हिंदूवादी छवि को बदलने में मदद की.

मुझे याद है कि 1977 में आपातकाल के बाद जो चुनाव हुए थे उसमें श्री मनमोहन कालिया के प्रयासों से जालंधर के भार्गव कैंप के एक सामाजिक कार्यकर्ता श्री रोशन लाल को जनता पार्टी का टिकट मिला. देश भर में जनता पार्टी को अभूतपूर्व समर्थन मिला लेकिन श्री रोशन लाल मेघों के गढ़ भार्गव कैंप से चुनाव हार गए. मेघों ने हलधर पर मोहर लगाई तो सही लेकिन ऐसा करने की सही राजनीतिक समझ रखने वाले मेघ उस समय कम थे. रोशन लाल जी के हक में प्रचार करने के लिए मैं भी जालंधर गया था और मुझे याद है कि आर्यसमाजी विचारधारा (उस समय यह शब्द कांग्रेसी विचारधारा का पर्यायवाची था) के लोगों ने उन्हें हराने के लिए पूरा ज़ोर लगा दिया था.

अब समय में काफी परिवर्तन आ चुका है. कई मेघों ने अपने सेवा क्षेत्र के छोटे-छोटे उद्योग धंधों और लघु उद्योगों के बल पर आर्थिक विकास किया है. समय के साथ भाजपा ने दूकानदारों और व्यापारियों की पार्टी होने की छवि अर्जित की है. इसी सिलसिले में इसने मेघ समुदाय के व्यापारियों और उद्यमियों को चिह्नित किया है.

वर्ष 1997, 2007 और 2012 के चुनाव में जालंधर वेस्ट से भाजपा ने आरएसएस काडर से आए श्री चूनी लाल भगत को चुना और भाजपा का टिकट दिया. वे अजेय समझे जाने वाले कांग्रेसी उम्मीदवार को हरा कर चुनाव जीत गए. वे तीन बार चुनाव जीते. 2011 में शिरोमणी अकाली दल और भाजपा गठबंधन के समर्थन से वे पंजाब विधान सभा के डिप्टी स्पीकर बने. वर्ष 2012 के पंजाब चुनावों में वे विजयी हुए और पंजाब विधान सभा में उन्हें भाजपा के विधायक दल का नेता बनाया गया. केबिनेट मंत्री के तौर पर उन्हें लोकल बॉडीज़ और मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च मंत्रालय दिया गया. भाजपा और शिअद गठबंधन की यह पहल ध्यान खींचती है.

उधर राजस्थान से श्री कैलाश मेघवाल को भाजपा का समर्थन मिला और केंद्र में भाजपा शासन के दौरान वे सन् 2003 से 2004 तक सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय के राज्यमंत्री रहे. वे 1975 से 1977 तक आपातकाल के दौरान जेल काट चुके हैं. श्री अर्जुन मेघवाल (जो पूर्व में आईएएस अधिकारी थे) आरएसएस काडर से भाजपा में आए और लोक सभा के बहुत सक्रिय सदस्य हैं. श्री नितिन गडकरी ने भारतीय जनता मजदूर महासंघ की स्थापना की है. इस कार्य के लिए राजस्थान में तीन बार विधायक रह चुके और एक बार राज्य मंत्री, आयुर्वेद, रह चुके अचलाराम मेघवाल को भारतीय जनता मजदूर महासंघ, पाली जिला के अध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंपी गई है. श्री मेघवाल पाली जिले में भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक रहे हैं. पंजाब में श्री कीमती भगत, जो आरएसएस काडर से आए हैं, को भाजपा ने गोरक्षा समिति का चेयरमैन बनाया है. ऐसे ही मेघों के और बहुत से नाम होंगे जो अब भाजपा से जुड़े हैं.

मेघवंशियों के लिए इन बातों से यह समझना आसान हो सकता है कि भाजपा ने भारत के मेघवंशियों (वृहद्तर रूप में दलितों और आदिवासियों) में अपनी पैठ बनाई है जिसने भाजपा की छवि को बदला है और भाजपा के ज़रिए राजनीति में इन समुदायों की सहभागिता बढ़ी है.

इतना होने के बावजूद अति पिछड़े मेघ समुदायों के लिए यह एक मुद्दा बना रहेगा कि 'अपने पास देने के लिए पार्टी फंड कितना है'. राजनीति पैसे के बिना नहीं चलती. समुदायों के भीतर ऐसे फंड बनाने ही पड़ेंगे.

Arjun Meghwal, BJP, Rajasthan
Kailash Meghwal, BJP, Rajasthan
Chuni Lal Bhagat, BJP, Punjab
Achalaram Meghwal, BJP, Rajasthan
Kimti Bhagat, BJP, Punjab
Chandrakanta Meghwal, BJP, Rajasthan
Mrs. Kamsa Meghwal, BJP, Rajasthan

Bali Bhagat, BJP, Jammu

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