Tuesday, December 20, 2011

Elections and money - चुनाव और पैसा

दिल्ली में एक बच्चे के जन्मदिन पर प्रबुद्ध मेघों का जमावड़ा हुआ. उसमें कुछ ऐसे सज्जन मेघ थे जिन्हें चुनाव लड़ने और हारने का अनुभव था. बातचीत शुरू हुई और महफिल गर्मा गई.

एक ने हँसते हुए दूसरे को कहा, मैंने तो इलैक्शन लड़ा था. तुम तो पैसे लेकर बैठ गए.
तुम्हें किसने कहा?”
ऑपोज़िट उम्मीदवार ने.”
तू तो उसी की सुन ले....वैसे मैंने ऐसा कुछ नहीं किया.”
तो बैठे क्यों थे? ज़मानत बचाने के लिए? हैं?”

इन तीखे सवालों के बाद की बातचीत का ब्यौरा काफी कड़वा (मेघ मधाण) है. सच्चाई क्या थी मैं भी नहीं जानता. इसलिए मुद्दे की बात करता हूँ.

चुनाव में जीत या हार होनी होती है. लेकिन यह बैठ जाने की स्थिति मनोरंजक और रुचिकर है. तीखी आवाज़ में सीधा आरोप, सुना भई, कितने पैसे लिए बैठने के?”

चलो यह मान कर चलते हैं कि आज की तारीख में बैठने का रेट 60-70 लाख रुपए है. मतलब कि अपना एक आदमी ठीक-ठाक सी दिखने वाली अमीरी रेखा में आ गया. कुछ ईमानदार-से दिखने वाले लोग कहेंगे कि यह तो पब्लिक के साथ धोखा है. क्या चुनाव जीतने वाला पब्लिक से धोखा नहीं करता आया है, यह उलटा सवाल पूछा जा सकता है उनसे. और चुनाव जीतने वाले कौन थे? मेघ थे क्या? समाचार-पत्र पब्लिक से हुए धोखे की खबरों से भरे हुए हैं, आज भी.

ज़रूरी तो नहीं लेकिन चुनावों में पैसे ले कर बैठ जाने वाले लोग इन कारणों से मुझे प्रिय हो भी सकते हैं. 
1.  यदि वे अपने परिवार की उन्नति के लिए इसका प्रयोग करते हैं. 
2. यदि वे समाज-सेवा के कार्यों में इसे लगाते हैं. 
3.  यदि वे आगामी चुनावों के लिए इसे बचा कर रखते हैं.

राजनीति की जड़ समाज-सेवा में होती है लेकिन हमेशा नहीं. क्योंकि राजनीति और चुनाव में पैसे और गुंडेपन का ज़ोर सब जगह दिखता है. समाज-सेवा करने वाला कोई व्यक्ति चुनाव लड़ता है और हार जाता है तो उसकी जड़ें नहीं सूखतीं, चलो यह मान लेते हैं. लेकिन ऐसी समाज-सेवा करने के लिए धन भी चाहिए. यह धन कहाँ से आएगा, इस पर सोचें. विश्वास रखें जब आप पैसे के बारे में सोंचेंगे तो पैसा आएगा भी ज़रूर. 

मेरी एक सलाह आपको है. जब राजनीति करें तो धर्म, नैतिकता वगैरा को थोड़ी देर के लिए किनारे रख दें लेकिन मंदिर जाना न छोड़ें. अगर चुनाव जीत जाते हैं तो धर्म और धार्मिक आयोजनों का प्रयोग अपनी राजनीति चलाए रखने के लिए करें. इससे आपके राजनीतिक करियर की सफलता की संभावनाएँ बहुत बढ़ जाती हैं. 

यह आलेख पढ़ कर यदि नैतिकता आपको कष्ट दे रही है तो बेहतर है कि आप राजनीति से दूर रहें. बुरा न मनाना दोस्तो अभी हाल ही में चंडीगढ़ जैसे पढ़े-लिखे शहर में नगर निगम के चुनाव में शराब धड़ाधड़ बँटी है. समाचार पत्र इस खबर से अटे पड़े हैं. यह है सच्चाई. 

Megh Politics

No comments:

Post a Comment