Thursday, December 15, 2011

Why there is no unity in Megh community - मेघवंश समुदाय में एकता क्यों नहीं होती


(1)  
प्रतिदिन यह प्रश्न पूछा जाता है कि मेघवंशियों में एकता क्यों नहीं होती. इस प्रश्न की गंभीरता का रंग अत्यंत काला है जिसे रोशनी की ज़रूरत है. यदि मेघवंशियों का आधुनिक इतिहास लिखा जाए तो उसमें एक वाक्य अवश्य लिखा रहेगा कि इनमें एकता नहीं है. एकता न होना एक नकली चीज़ है जो गुलामी का जीवन जी रहे/जी चुके लोगों में पाई जाती है. यह एक मानसिकता है जो यात्नाएँ दे कर गुलामों में विकसित की जाती है. उन्हें विश्वास दिलाया जाता है कि वे न तो एक हैं और न ही एक हो सकते हैं. उनके समूहों के नाम, धर्म आदि अलग कर दिए जाते हैं. उन्हें यह विचार दिया जाता है कि उनका धर्म, जाति या दर्जा अलग-अलग है. इस तरह उन्हें एक-दूसरे से अलग रहने की आदत डाल दी जाती है और सामाजिक दबाव से मजबूर किया जाता है कि वे एक दूसरे से संपर्क न बढ़ाएँ. जाति आधारित इस गुलामी (Caste based slavery), जिसे भारतीय गुलामी (Indian slavery) कहा जाता है, में बने रहने की मजबूरी याद दिलाई जाती रहती है. इससे उन्हें मानवीय अधिकारों (Human rights) से दूर रखना आसान हो जाता है. वे शिक्षा, कमाई के बेहतर साधनों, सम्मानपूर्ण जीवन आदि से दूर कर दिए जाते हैं. यदि शिक्षा द्वारा इस तथ्य को समझ लिया जाए तो इस मानसिकता से पूरी तरह पार पाया जा सकता है और सामाजिक एकता लाई जा सकती है. इसका लाभ यह होगा कि आत्मविश्वास बढ़ेगा और सब के साथ मिल कर चलने की शक्ति आएगी. लोकतंत्र में अपने विकास के मुद्दों पर बात कहने के लिए सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक मंच साझा करने की और संगठन की आवश्यकता है. एक मंच पर आएँ. अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का यही एक रास्ता है.

(2)  
हाल ही में एक शहर में मेघ समुदाय ने शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के जन्मदिन पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया. आजोजन सफल रहा. अधिक जानकारी लेने के लिए आयोजकों और मध्यम स्तर के तथा नए (युवा) नेताओं से बात की तो मतभेद और आरोप खुल कर सामने आ गए. यहाँ मेरा उद्देश्य उनका खुलासा करना नहीं है. ये मतभेद आदि तो केवल लक्षण मात्र हैं. यहाँ मैं उनके कारणों की जाँच करना चाहता हूँ.

हममें क्यों एकता नहीं होती....यह सवाल अब कई संदर्भों में उठने लगा है. दो-एक अधिक पिछड़े समुदाय मेघों से आगे निकल चुके हैं जिन्हें मेघ अपने से कमतर मानते थे. आगे बढ़ चुके समुदाय अब अन्य जातियों के साथ अधिक समन्वयन करके आर्थिक संपन्नता की ओर बढ़ चुके हैं और राजनीतिक सत्ता में उनकी भागीदारी बढ़ी है. एक राज्य में तो उनकी मुख्यमंत्री है. जाहिर है कि एकता और फिर सत्ता में भागीदारी के बिना सामूहिक संपन्नता नहीं आ सकती. बिखरे हुए समूह लोकतंत्र में हैसीयत खो देते हैं क्यों कि वे दबाव समूह नहीं बन सकते.

वहाँ की स्थिति से जो समझा उसे यहाँ लिख रहा हूँ-
1. उत्साह, अवसर, समर्थन, मार्गदर्शन, धन, नेतृत्व आदि सब कुछ था, समन्वय नहीं था.
2. पृष्ठभूमि में राजनीतिक दल थे. उन्होंने समुदाय के आंतरिक नेतृत्व को उभरने नहीं दिया. इससे असंतोष हुआ. युवा इस प्रक्रिया को समझ नहीं सके. प्रशिक्षण की कमी स्पष्ट थी.
3. कुछ युवकों में मशहूर होने की महत्वाकाँक्षा आवश्यकता से अधिक थी.
4. समन्वय और सहयोग की जगह दोषारोपण का दूषित दौर शुरू हो गया.
5. युवाओं से लेकर अनुभवी लोगों तक ने समुदाय को कोसना जारी रखा कि यह अनपढ़ तबका है, ये एकता कर ही नहीं सकते, इन्हें समझाना असंभव है, इनमें आगे बढ़ने की इच्छा ही नहीं है आदि पुराने वाक्य सैंकड़ों बार दोहराए गए. नतीजा - वही ढाक के तीन पात सब कुछ हुआ लेकिन कार्यक्रम से संतुष्टि नहीं हुई. एक दूसरे की आलोचना की गई परंतु कार्यक्रम के बाद की जाने वाली आवश्यक समीक्षा करना किसी को याद नहीं रहा.

प्रबंधन गुरुओं ने इन सारी स्थितियों पर अपार प्रशिक्षण सामग्री और साहित्य रचा है.  मेघ समुदाय के लोग बार-बार समाजिक-राजनीतिक गतिविधियाँ चलाते हैं, असफल होते हैं और बाहर-भीतर से टूटते हैं क्योंकि जहाँ से शुरू करते हैं, वहीं पहुँच जाते हैं. यह कष्ट देने वाली स्थिति है.

समन्वय क्यों नहीं होता
- सामूहिक गतिविधि का अर्थ लोकप्रियता लगाया जाता है
- सामूहिक लक्ष्य स्पष्ट नहीं होता
- मिशनरी भावना नहीं है, प्रत्येक गतिविधि अल्पकालिक होती है
- कोई भी कार्यक्रम शुरू होने से पहले स्थानीय राजनीति करने वाले अपना कुचक्र शुरू कर देते हैं. राजनीतिक जागरूकता न होने से संगठन टूटने लगता है.

सुझाव
1. नेतृत्व देने वाले नेता समुदाय के सदस्यों के प्रति अपशब्द बोलना बंद करें. अपशब्दों से नकारात्मक प्रतिक्रिया होती है.
2. समुदाय के लोग शताब्दियों की ग़रीबी से प्रभावित हैं. आप उनसे अचानक एकता की आशा कैसे कर सकते हैं. उनका मन अचानक अपनी सभी बाधाएँ दूर करके आपसे कैसे मिल सकता है. उन्हें प्रताड़ना दे-दे करके विभाजित रहने की आदत डाली गई थी. उनके साथ प्रेम का बर्ताव करें.  
3. राजनीतिक दखलअंदाज़ी रहेगी, युवा कार्यकर्ताओं का प्रबंधन गुरुओं द्वारा समुचित प्रशिक्षण इसके नकारात्मक प्रभाव को रोक सकता है.
4. लक्ष्य तय और स्पष्ट हों.
5. आपसी सहयोग और समन्वय की आवश्यकता को पहले समझा/समझाया जाए.
6. अपने सामाजिक कार्यक्रमों को भी प्रशिक्षण का मंच बनाएँ.
7. सबसे बढ़ कर महिलाओं को शिक्षित-प्रशिक्षित करें. एक महिला पूरे परिवार और गली मोहल्ले के लिए शिक्षिका बन जाती है. बच्चों को संस्कार द्वारा जो वह बना सकती है वह कार्य देश के नेता नहीं कर सकते. माता ने जो संस्कार दे दिया वह अवश्य फलित होता है.

देश को नेता नहीं बनाते. देश को और नेताओं को महिलाएँ ही बनाती हैं. पहले उनके प्रशिक्षण का प्रबंध करें.

मेघनेट पर इस आलेख के नीचे टिप्पणीकार श्री पी.एन. सुब्रमणियन द्वारा दिया गया लिंक यहाँ जोड़ा गया है. (स्त्री सशक्तिकरण) सुब्रमणियन जी को कोटिशः धन्यवाद

Megh Politics


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