दिनाँक 18-12-2011
को पठानकोट में भगत महासभा ने अपना राजनीतिक अस्तित्व दर्शाते हुए एक प्रैस
कांफ्रैंस की जिसमें भगत महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. राजकुमार और इस सभा के
पंजाब राज्याध्यक्ष श्री राजेश कुमार स्वयं उपस्थित थे.
प्रैस कांफ्रैंस का
उद्देश्य मीडिया के माध्यम से यह संदेश देना था कि मेघ भगतों के संगठित प्रयास पंजाब
में मज़बूत हैं और कि राजनीतिक पार्टियाँ इस समुदाय को समुचित प्रतिनिधित्व दें.
इस प्रयोजन से पठानकोट के लिए सुश्री आशा भगत का नाम विशेष रूप से सामने लाया गया.
पंजाब में फरवरी 2012
में चुनाव होने जा रहे हैं. राजनीतिक गतिविधियाँ बढ़ गई हैं. ज़ाहिर है कि मीडिया
भाव खा रहा है (राजनीतिक खबरों का रेट बढ़ गया है) और उसने यह खबर प्रकाशित नहीं
की. भारत में दलितों का अपना प्रभावशाली मीडिया होना चाहिए, इसकी आवश्यकता और भी
गंभीरता से महसूस हुई.
इसी स्थिति का दूसरा
पक्ष है. पठानकोट और आसपास के क्षेत्रों में मेघ भगत वोटरों की संख्या चौबीस हज़ार से ऊपर
है जबकि एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल द्वारा छापे गए दस्तावेज़ में इनकी संख्या चार हज़ार पाँच सौ बताई गई है.
ऐसा करने का एक ही
उद्देश्य है कि मेघ भगतों की शक्ति का आकलन कम करके दिखाया जाए. ये
राजनीतिक पार्टियाँ ऐसा षडयंत्र करने का साहस इसलिए करती हैं क्योंकि हमारी
अपनी संगठनात्मक क्षमता सवालों के घेरों में है. कुल मिला कर परिणाम यह कि मेघ भगतों को
राजनीतिक दृष्टि से किसी गिनती में नहीं लिया जाता. पठानकोट के लगभग 16 हज़ार
मेघ वोटरों को यह दस्तावेज़ खा गया. वे कहाँ हैं जी? पूरे पंजाब में तो हाल देखने लायक होगा.
मीडिया हमारी खबरों
को खा जाता है और राजनीतिक पार्टियाँ हमारी संख्या को निगल जाती हैं. जागो मेघ
जागो!! लिंक रोड्स पर नहीं,
हाइवे पर एकत्रित हो जाओ.
Megh Politics
Megh Politics
The central point of above write up is the numerical strenth of Meghs. If there is any authoritative official figure with any body, only then you may convince any organisation. If you talk of strenth of voters, then also there are sheer estimates against which the other organizations shall put their own estimates to prove you wrong, particularly when the self-styled leaders of the community have never till date worked hard sincerely for any of the political parties to achieve high party positions to exert their weight. They simply rely upon forming too much weak or even non-existing Sabha/Societies to tell the political parties that they have great following, which in fact does not exist. So far as the official census is concerned, the Meghs seldom agree to the same and put forward the arguments that either the census operation is unfair, or else the Meghs themselves do not disclose their exact/correct identity/caste.
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