Wednesday, May 9, 2012

Bharatiya Shudra Sangh (BSS) - भारतीय शूद्र संघ

भारत की दलित जातियाँ अपनी परंपरागत जाति पहचान से हटने के प्रयास करती रहीं हैं. इस बात को भारत का जातिगत पूर्वाग्रह भली-भाँति जानता है. मूलतः शूद्र के नाम से जानी जाती ये जातियाँ अपनी पहचान को लेकर बहुत कसमसाहट की स्थिति में हैं.

व्यक्ति जानता है कि यदि वह अपना कोई जातिनिरपेक्ष सेक्युलरसा नाम रख लेता है जैसे भारत भूषण या दशरथ कुमार या अर्जुन तो उसे हर दिन कोई न कोई व्यक्ति अवश्य पूछेगा कि भाई साहब आप अपना पूरा नाम बताएँगे? तो वह अपनी पहचान छिपाने के लिए दूसरी कोशिश करते हुए कहेगा, “भारत भूषण भारद्वाज. दूसरा व्यक्ति कहेगा, “यह तो ऋषि गोत्र हुआ. पूरा नाम…”. दो-चार सवालों के बाद उत्तर देने वाले व्यक्ति का स्वाभिमान आहत होने लगता है. वह जानता है कि उसकी जाति पहचान ढूँढने वाला व्यक्ति उसे हानि पहुँचाने वाला है.

अपनी पहचान के कारण संकट से गुज़र रही इन जातियों के सदस्यों ने अपने नाम के साथ सिंह, चौधरी, शर्मा, वर्मा, राजपूत, अग्रवाल, गुप्ता, मल्होत्रा, पंडित सब कुछ लगाया. लेकिन संकट टलता नज़र नहीं आता. मैंने अपने जीवन में इसका सरल हल निकाला कि नाम बताने के तुरत बाद मैं कह देता था कि मेरी जाति जुलाहा है, कश्मीरी जुलाहा (तर्ज़ वही रहती थी- My name is bond, James bond). :)) इससे पूछने वाले के प्रश्न शांत हो जाते थे और उसके मन को पढ़ने में मुझे भी आसानी हो जाती थी. इस तरीके से मुझे बहुत से बढ़िया इंसानों को पहचानने में मदद मिली.

अभी हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान भारतीय शूद्र संघके राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रीतम सिंह कुलवंशी से बात हुई और उन्होंने एक पुस्तिका मुझे थमाते हुए कहा कि इसे देखिएगा. इसमें उल्लिखित बातों से बहुत-सी आशंकाओं का समाधान हो जाएगा. वह पुस्तिका मैंने ध्यान से पढ़ी है और उसका सार यहाँ लिख रहा हूँ.


भारतीय शूद्र संघ - मिशन

इस पुस्तिका में स्पष्ट लिखा गया है कि भारतीय शूद्र संघ, संघ नहीं एक मिशन है. इसमें मोहन जोदड़ो और हड़प्पा सभ्यताओं से लेकर आधुनिक युग तक भारत के मूलनिवासियों का बहुत ही संक्षिप्त इतिहास दिया गया है जो बहुत प्रभावकारी है. इसी के दूसरे पक्ष के तौर पर शूद्र समाज के सदस्य व्यक्ति की अस्मिता (पहचान) की बात उठाई गई है. इस संस्था का मिशन यह है कि शूद्र समाज के हर बुद्धिजीवी को एकजुट होकर स्वाभिमान के लिए प्रयास और संघर्ष करना पड़ेगा. अन्य बातों के साथ-साथ इस मिशन का उद्देश्य इस बात का प्रचार करना भी है कि शूद्र समाज के व्यक्ति अपने नाम के पूरक के तौर पर इन नामों का प्रयोग करें- भारती, भारतीय, रवि, अंबेडकर, भागवत, वैष्णव, सूर्यवंशी, कुलवंशी, नागवंशी, रंजन, भास्कर इत्यादि. उल्लेखनीय है कि ये नाम दलितों के साथ पहले भी जुड़े हैं. शायद यह मिशन ऐसे नामों की शार्ट लिस्ट (छोटी सूची) तैयार करना चाहता है या स्पष्ट पहचान वाले शब्दों को बढ़ावा देना चाहता है.

मिशन द्वारा वितरित पुस्तिका में बहुत से बिंदु हैं जिन पर गंभीर विचार मंथन आवश्यक है. दलितों के कई समूह सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक संगठनों में बँट कर अलग-अलग कार्य कर रहे हैं. उनमें से कई बहुत बड़े स्तर पर सक्रिय हैं. उनका एक गठबंधन (confederation) तैयार करने की आवश्यकता है. सभी समूह अपना-अपना कार्य करें साथ ही अपना एक महासंघ गठित करें. इससे सुदृढ़ संगठन और एक साझा अनुशासन निर्मित होगा.

समाज के विभिन्न वर्गों में सदियों से चला आ रहा और घर-घर में फैला कर्मचारी-नियोक्ताका संबंध एक अविरल प्रक्रिया है. ऐसे सामाजिक संबंध का विकास तो होता है लेकिन यह अपना समय लेता है. यह मिशन इस तथ्य को स्पष्ट स्वीकारता है. 



2 comments:

  1. फेसबुक पर श्री रजनीश कुमार भगत ने ये तीन टिप्पियाँ लिखीं थीं-

    Rajnish Kumar Bhagat- but sir for your kind information we r not shudras u may call us dalits we'll accept it but if u call us shudras that will not appropriate for Meghs

    Rajnish Kumar Bhagat- may be u r right according to your opinion but sir our generation is not going to accept so please re consider the quotation

    Rajnish Kumar Bhagat- Sir we have come across the boundaries of untouchability now when the new generation is upcoming they agrees that we r meghs but they 'll not listen to us that still they r untouchable or shudras they will agree to the lean of dalits but not shudras

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  2. श्री रजनीश जी की उक्त टिप्पणियों के उत्तर में मैंने यह लिखा था-

    Bharat Bhushan @‎Rajnish Kumar Bhagat. आर्यसमाज ने 1903 में मेघों का शुद्धिकरण किया था और मेघ जनजाति को हिंदुओं की मुख्य धारा में शामिल करते हुए परंपरानुसार चौथे वर्ण (शूद्र) में रखा था. तभी मान लिया गया था कि मेघ अब हिंदुओं की निम्न जातियों में शामिल हो गए हैं. केंद्रीय प्रशासन ने अनुसूचित जातियों की सूचियाँ 1931 में तैयार की थीं. जिसमें मेघों को हिंदुओं की एक निम्न जाति के तौर पर रखा गया. इन सूचियों में शामिल होने से जो लाभ मेघों को होने वाला था उससे उन्हें वंचित करने के लिए स्वतंत्रता के बाद मेघ जाति को इन सूचियों से निकाल दिया गया. इसी रिकार्ड के आधार पर कार्य करते हुए श्री मिल्खी राम भगत, पीसीएस ने मेघ समाज के अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ दिल्ली जाकर लॉबिंग की और मेघों को अनुसूचित जातियों की सूची में शामिल करवाया. यह तथ्य है.

    आप शूद्र शब्द पर असहमत हो सकते हैं और कोई दूसरा व्यक्ति जनजाति शब्द पर. कोई आज स्वयं को दलित कहलाना चाहता है तो कोई मूलनिवासी. लेकिन भारत के जाति इतिहास की यह कड़वी सच्चाई है कि ये जातियाँ/जनजातियाँ सदियों से दासत्व झेल रही मानवता का पीड़ित चेहरा हैं. दासत्व की मानसिकता से निकलने के लिए इनका संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ. इन्हें सत्ता में साझेदारी से दूर रखने के लिए बाँट कर रखा गया है. ये कई नामों में बँटे हैं जबकि इनका मूल एक ही है चाहे वे दलित जातियाँ हों या दलित जनजातियाँ. जो लिंक मैंने ऊपर दिया है वह इन जातियों के संघर्ष का एक संकेत मात्र है.

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