मेघवंश नाम का प्रयोग सर्वप्रथम मैंने श्री आर.पी. सिंह की पुस्तक ‘मेघवंश : एक सिंहावलोकन’ में पढ़ा था और लगा कि मेघ ऋषि में अपना उद्गम ढूँढने
वाली सभी जातियों के समूह के लिए इससे बेहतर कोई दूसरा जातिवाचक शब्द नहीं
हो सकता. इनमें मेघ, भगत, जुलाहे, बुनकर, मेघवाल, मेघवार, (इस्लाम अपना चुके)
अंसारी आदि सभी आते हैं. ये सभी मेघवंशी जातियाँ मूलतः कपड़ा बनाने के
कार्य से संबंद्ध रही हैं और सरकारी नीतियों के कारण इनकी आजीविका का
स्रोत तबाह हो चुका है. कपड़ा बनाने का कार्य बड़ी जातियों
और औद्योगिक घरानों ने संभाल लिया है. राजनीतिक फैसलों के कारण इन मेघवंशियों को मिली है
गरीबी की निरंतरता. करोड़ों की संख्या में ये बेरोज़गार किए गए हैं ताकि
उद्योगों और अन्य कार्य के लिए सस्ता श्रम उपलब्ध रहे. ध्यान दें कि यह सब
राजनीतिक फैसलों के तहत किया गया है.
सरकारी नीतियों के कारण उनका इस स्थिति में आ
जाना मात्र संयोग नहीं है. जातिगत दुराग्रहों के कारण उन्हें इस हालत
में लाया गया है. ये दलित जातियाँ हमेशा से संघर्षशील रही
हैं और इनके संघर्ष के मूल में कबीर की विचारधारा प्रवाहित है. इसी परिप्रेक्ष्य में अब
यह बात स्पष्टता के साथ समझी जाने लगी है कि यदि आर्थिक हालत सुधारनी है
तो सुदृढ़ संगठन के माध्यम से राजनीतिक फैसलों को प्रभावित करना
होगा और नीतियों को अपने पक्ष में कराना होगा.
जब सामाजिक संगठन
बनते हैं तो उनका अंतिम लक्ष्य प्रकारांतर से आर्थिक प्रगति ही होता है. अतः एक
साझा धार्मिक आधार और सामाजिक-राजनीतिक संगठन तैयार करके
इस लक्ष्य को साधा जा सकता है. लेकिन यह तभी संभव है जब ऐसे संगठनों को तोड़ने वाली ताकतों को
समझा जाए और उनका प्रतिरोध करने की क्षमता का लग़ातार संयोजन किया जाए.
संघर्ष यह है कि दिशा विहीनता को दिशा में बदलें, अनेकता के नकलीपन को समझें और समाप्त करें, ग़रीबी के प्रवाह में न बहें, उससे बाहर आएँ.
Megh Politics
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