केशव शंकर पिल्लै रचित कार्टून |
संसद
हंगामों की राजधानी होती है. कोई किसी की टाँग खींचता है तो कोई किसी का कुर्ता, कोई किसी का कान खींचता है तो कोई किसी
की लंगोटी खींचने को आतुर होता है. कार्टूनिस्टों के लिए एक भरी-पूरी दुनिया!!
बाबा
साहेब के कार्टून पर विवाद क्यों उठा इस पर एक और विवाद हो चुका है और पी. चिदंबरम
राहत महसूस कर रहे हैं. मैंने यह कार्टून पहले भी देखा है. फेसबुक पर भी इसे लेकर
हंगामा हुआ. इस कार्टून में अंबेडकर का कोई अपमान होता नहीं दिखता. यह तो नेहरू और अंबेडकर दोनों का कार्टून है. हाँ इसमें
संविधान बनने की प्रक्रिया के धीमे होने की बात है. देखने की ज़रूरत है कि आज इसका
महत्व क्या है? क्या इसे पाठ्यक्रम में रखने की आवश्यकता है?
कुछ
वर्ष पूर्व पढ़ा था कि पाकिस्तान में एक पाठ्य पुस्तक में स्कूली बच्चों के लिए
प्रश्न था कि उस मुल्क का नाम बताओ जिसकी मिसाइल टेस्ट के दौरान समन्दर में जा
गिरी थी (उत्तर था- भारत). कोई चाहे तो इस पर तिलमिला सकता है या हँस सकता है. ठीक
वही बात इस कार्टून को लेकर भी है. सोचने की बात है कि बच्चों को यह पढ़ा कर कौन
सा लक्ष्य साधा जा रहा है. भारत का संविधान बनाने की गति धीमी थी (या भारत की एक
मिसाइल समुद्र में गिर गई थी), इसकी
प्रासंगिकता क्या है? यदि गति धीमी थी तो उसे तेज़ करने के
लिए क्या किया गया? उत्तर ढूँढने जाएँगे तो इससे यह
संभावना अधिक बनेगी कि बच्चे कल इस बात को शीघ्रता से ग्रहण करेंगे कि नेहरू और
अंबेडकर की जल्दबाज़ी के कारण संविधान का वर्तमान स्वरूप 'कॉपी-पेस्ट' से
बना है जैसा कि कई वेबसाइट्स आदि पर
लिखा गया है. दूसरी ओर पाकिस्तान के बच्चे कभी तो जान ही जाएँगे कि भारत
अग्नि-5
जैसी आईबीएम का मालिक है. कोशिश यही होनी चाहिए कि बच्चों को तथ्यात्मक और
उपयोग
बातें पढ़ाई जाएँ. बच्चों में सकारात्मक राष्ट्रीय चरित्र भरने का आवश्यकता
है. कार्टूनों की नकारात्मक कला भी इसमें योगदान देती है लेकिन उसका इतना
महत्व नहीं है.
स्पष्ट
है कि स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों के लिए सामग्री का चुनाव करने वालों के पास कोई
विज़न नहीं है. कुछ वर्ष पूर्व बहुत छोटे बच्चों के लिए निर्धारित एक पाठ्य पुस्तक
में लिखा था- ‘घर मत चल’. उस वाक्य ने कितने बच्चों को यह
संस्कार दिया और कितने परिवारों को उसके कारण कष्ट उठाने होंगे इसका आकलन करना
कठिन है.
यह अत्यावश्यक है कि स्कूली पाठ्यक्रम बनाने के लिए ऐसे लोगों की तलाश की जाए जो बच्चों के मस्तिष्क रूपी कच्चे माल से बेहतर संसार का विनिर्माण करने की कला जानते हों.
Megh Politicsयह अत्यावश्यक है कि स्कूली पाठ्यक्रम बनाने के लिए ऐसे लोगों की तलाश की जाए जो बच्चों के मस्तिष्क रूपी कच्चे माल से बेहतर संसार का विनिर्माण करने की कला जानते हों.
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